फन कुचलने का हूनर भीं सिखिए..सांप के खौफ से जंगल नहीं छोडा करते...: संजय राउत

Update: 2022-07-19 02:50 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: शिवसेना संकटों के भंवर में फंसी है. एकनाथ शिंदे के साथ 55 में से 40 विधायकों की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को पहले सत्ता से हाथ धोना पड़ा और अब बात पार्टी पर बन आई है. उद्धव ठाकरे के साथ पार्टी के जो 15 विधायक बचे हैं, उनमें आदित्य ठाकरे को छोड़कर 14 विधायकों की सदस्यता भी खतरे में है. स्पीकर की ओर से अयोग्यता की नोटिस को विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

उद्धव ठाकरे अब पार्टी बचाने के लिए चुनाव आयोग की दर पर हैं तो वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय राउत अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं. ठाकरे परिवार जहां पार्टी पर कंट्रोल के लिए जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ संजय राउत शेर-ओ-शायरी करने में जुटे हैं. दरअसल, संजय राउत ने एक शायरी ट्वीट की है.
संजय राउत ने ट्वीट कर लिखा है कि फन कुचलने का हुनर भी सीखिए, सांप के खौफ से जंगल नहीं छोडा करते. संजय राउत ने अपने ट्वीट के अंत में 'जय महाराष्ट्र!!' भी लिखा है. संजय राउत शायराना अंदाज में नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के जरिये तेवर दिखा रही है. शिवसेना के बागियों ने जिस भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर सूबे में सरकार बनाई है, सामना के जरिये पार्टी उसके खिलाफ आक्रामक है.
सामना के जरिये शिवसेना ने महंगाई को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. सामना में लिखा है कि जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान पर पहुंचाने के बाद अब मोदी सरकार ने किचन की जरूरी वस्तुओं पर भी जीएसटी का वार किया है. दिल्लीश्वरों ने गरीब और मध्यम वर्ग की कमर तोड़ने का निश्चय कर लिया है. रसोईघर में प्रतिदिन इस्तेमाल की जानेवाली दही, छाछ, पनीर, पैकेट बंद आटा, चीनी, चावल, गेहूं, सरसों, जौ पर पहली बार ही पांच फीसदी जीएसटी लगाई गई है. डेयरी उत्पाद और अनाज के साथ गरीब और मेहनतकश लोग जो लाई वगैरह का सेवन करते हैं, उस पर भी जीएसटी लगा दी गई है.
सामना में सरकार पर तंज करते हुए लिखा है कि 'अच्छे दिन' का गाजर तो सरकार ने पहले ही तोड़कर खा लिया है. ये सपना दिखाकर सत्ता में आनेवालों को कम-से-कम जीवन से जुड़ी आवश्यक वस्तुओं की दर बढ़ाने के पहले 'जन' की नहीं तो 'मन' की सुननी चाहिए थी. घर की प्रतिदिन की रसोई महंगी करने का यह फरमान जारी करते समय सरकार और वित्त मंत्री का हाथ जरा भी कांपा नहीं होगा क्या? हैरानी ये है कि पांच साल पहले जब सामान्य कर प्रणाली के रूप में सरकार ने जीएसटी को अस्तित्व में लाया उस समय उसका गुणगान करते हुए खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ही जीवनावश्यक वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगेगी, ऐसा ऐलान किया था.
सामना के जरिये शिवसेना ने पीएम मोदी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा है कि पीएम मोदी खुद बोले थे कि गेहूं, चावल, दही, लस्सी, छाछ पर पहले टैक्स लगता था. अब जीएसटी आने के बाद ये तमाम वस्तुएं टैक्स फ्री रहेंगी. अब उनकी ही सरकार ने इन वस्तुओं पर पांच फीसदी जीएसटी लगा दिया है. पूर्ण बहुमत के कारण शासक को क्या आम जनता को इतना हल्के में लेना चाहिए? सामान्य जनता के हितों की ओर आंख बंद करके मनमानी राजकाज किया तो क्या होता है, इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका के रूप में पूरी दुनिया के सामने है. सत्ता के कारण आई शेखी और अहंकार से ही ऐसा निर्णय लिया जाता है. घर-घर में पहले ही जले चूल्हे की आग में जीएसटी का तेल उड़ेलनेवाला निर्णय इसी प्रकार का है.
शिवसेना ने ये भी कहा है कि तीन साल पहले इसी सरकार ने उद्योगपतियों का कारपोरेट टैक्स कम कर दिया था. वित्त मंत्री ने कहा था कि इससे सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा. सरकार ने तीन साल में अमीर उद्योगपतियों को चार लाख करोड़ रुपये की खैरात बांट चुकी है तो वहीं खाद्यान्न और दही पर पर जीएसटी लगाकर गरीब जनता पर महंगाई का बोझ डाल दिया है. अब इसे कौन सा काम-काज कहा जाए? अमीरों पर उड़ेलने के लिए आपके पास पैसा है लेकिन गरीबों को सहूलियत देने के लिए नहीं. ये सरकार गरीब और आम जनता की नहीं, बड़े उद्योगपतियों का हित देखनेवाली सरकार है. खाद्यान्न और दही पर जीएसटी लगाकर मोदी सरकार ने आज खुद ही इस आरोप पर मुहर लगा दी है.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र में कहा है कि अर्थव्यवस्था, विकास दर के बारह बजे हैं. महंगाई का विस्फोट हुआ है और बेरोजगारी भी भयंकर रूप ले चुकी है. सरकार इन सभी मोर्चों पर पूरी तरह नाकाम साबित हुई है. अपनी पार्टी की सरकार वाले राज्यों में दो से पांच रुपये पेट्रोल के दाम कम करना और सिलेंडर के दाम 50 रुपये तक बढ़ा देना, आंवला देकर कद्दू छीन लेने की ये ठगी कितने दिनों तक चलेगी. पैकिंग बंद मछलियां, रक्षा उपकरण, हॉस्पिटल में पांच हजार से अधिक किराया वाले कमरे के साथ ही जनता होटल में जिस एक हजार से कम किराया वाले कमरे का चुनाव करती है, उस पर भी पांच फीसदी जीएसटी लगा दी गई है.
सामना में ये भी लिखा है कि छात्रों की पेंसिल, शार्पनर, बैंक का चेकबुक, मकान का किराया और छपाई की स्याही से लेकर एलईडी लैंप तक, कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी को अब 12 फीसदी से बढ़ाकर 18 फीसदी कर दिया गया है. सोलर वॉटर हीटर, सड़कें,पुल, रेलवे, मेट्रो के लिए यंत्र सामग्री, मसाले, गुड़, कपास, जूट, कॉफी का भंडारण भी जीएसटी दर में वृद्धि के दायरे में आ गया है. इतना ही नहीं, श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामग्री पर भी अब 12 की बजाय 18 फीसदी जीएसटी वसूली जाएगी. यह मौत की चौखट पर मोदी सरकार की ओर से की जानेवाली 'कर वसूली' ही है. जीना तो महंगा हो ही गया है, अब जीएसटी की कृपा से मरना भी महंगा हो गया है. सत्ता की मलाई खानेवाले बकरों ने जीने से लेकर मरने तक सब कुछ महंगा कर दिया है.
शिवसेना ने मुखपत्र सामना के जरिये केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि देश की आम जनता पहले ही लगातार बढ़ती महंगाई से दो-दो हाथ करते हुए पस्त हो चुकी है. महंगाई के राक्षस पर नियंत्रण की बजाय सरकार जीएसटी की धारदार छुरी से आम जनता की जेब काटने में जुटी है. जीएसटी की कुल्हाड़ी चलाकर रोज का भोजन महंगा करनेवाली अहंकारी सरकार को आशीर्वाद देना चाहिए या शाप, यह अब देश की जनता को तय करना चाहिए. आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम सिद्ध हुई केंद्र की सरकार ने खाली तिजोरी भरने के लिए जीएसटी के माध्यम से जो दमनकारी वसूली शुरू की है, उसकी तुलना मुगलकालीन जजिया कर से करनी होगी. जीवन के लिए जरूरी वस्तुओं पर जीएसटी नई मुगलई है. इस नई मुगलई के विरोध में जनता को अब यलगार करना ही होगा.

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