जब से एलन मस्क के हाथों में ट्विटर की कमान आई है, पूरी दुनिया में एक ही चर्चा चरम पर है, वह है प्लेटफॉर्म से एम्प्लॉयीज़ की छँटनी। हर दिन अखबारों के पन्नों में जैसे यह खबर बेहद आम हो गई है। माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क द्वारा दुनिया भर में एम्प्लॉयीज़ की छँटनी के काम को देखते हुए हर कोई यही कयास लगा रहा है कि क्या ये एम्प्लॉयीज़ ट्विटर के लिए विश्वास पात्र नहीं थे, या फिर कारण कुछ और है। लेकिन क्या?? यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि नौकरी से निकालने की प्रक्रिया को काफी जल्दीबाजी में अंजाम दिया गया है। यह भी स्पष्ट है कि जल्दबाजी में अच्छे से अच्छा इंसान गच्चा खा सकता है। एलन के ऐलान में भी यही हाल दिखाई दे रहे हैं। बेशक, इतनी भारी मात्रा में फेर-बदल निश्चित ही नफा और नुकसान के मायने एलन को पढ़ा देगा।
ट्विटर के कुल 7,500 स्टाफ में से तकरीबन आधे की छँटनी कर दी गई है। अपनी कर्मस्थली को समर्पित, काम करते-करते एम्प्लॉयीज़ को लैपटॉप से स्वतः ही लॉग आउट कर देना क्या एम्प्लॉयीज़ के लिए नुकसान है? नहीं, यह नुकसान है ट्विटर का, यह नुकसान है उस विश्वास का, जो ट्विटर ने चकनाचूर कर दिया है। यह विश्वासघात है उस ऐप डेवलपर के साथ, जो पिछले 6 वर्षों से कंपनी के लिए काम कर रहा था। मुद्दा यह है कि भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। कंपनी में भारत के लगभग 250 एम्प्लॉयीज़ हैं, जिनमें से करीब 200 को निकाला गया है। एलन का कहना है कि ट्विटर का वर्कफोर्स कम करने के संबंध में हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि कंपनी को हर दिन 4 मिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है। इस नफा-नुकसान के हिंडोलों से परे, जिन एम्प्लॉयीज़ को निकाला गया है, उन्हें 3 महीनों का सेवरेंस दिया है। लेकिन बावजूद इसके, सवाल उठता है कि क्या जरुरत न पड़ने पर गुल्लक में जमा पूँजी के रूप में सुरक्षित एम्प्लॉयीज़ की भी छँटनी कर दी जाएगी? शुरुआती तौर पर भले ही एम्प्लॉयीज़ के लिए यह सफर मुश्किल भरा साबित हो रहा है, लेकिन कहीं आगे जाकर नफा-नुकसान के इस तराजू में नुकसान एलन के हिस्से में न हो जाए।
एलन को ट्विटर की बागडोर संभाले अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और इतने कम समय में उनका बड़े पैमाने पर एम्प्लॉयीज़ को बर्खास्त करने का फैसला अपमानजनक और असंवेदनशील है। इतनी बड़ी कंपनी का 'नया' मालिक होने के नाते, उनके लिए अपने एम्प्लॉयीज़ के बारे में जानना व्यावहारिक रूप से असंभव है कि कौन कुशल हैं और कौन नहीं। क्या अचानक बर्खास्त कर देने के बजाए उन्हें एम्प्लॉयीज़ को खुद को साबित करने का मौका नहीं देना चाहिए था? इतने बेतरतीब ढंग से हजारों की संख्या में लोगों के करियर के साथ कैसे खेला जा सकता है? इसके अलावा, यदि कंपनी को हर दिन करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है, तो क्या उन्हें बर्खास्त कर देना ही एकमात्र उपाय था? एलन को चाहिए था कि पहले तमाम एम्प्लॉयीज़ की कुशलता की जाँच करते, इसमें विफल होने वाले एम्प्लॉयीज़ को बेशक बर्खास्त कर देते।
लेकिन एम्प्लॉयीज़ अब इस सवाल के साथ खुद को खड़ा हुआ पाते हैं कि कंपनी का हिस्सा बनकर आखिर क्या गलती कर दी, जो सजा में उन्हें बाहर का दरवाजा दिखाया गया? कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से कितना ही मजबूत क्यों न हो, अचानक नौकरी से निकाल देना निश्चित रूप से निराशाजनक है। मस्क ने हजारों लोगों पर जो मानसिक प्रताड़ना लगाई है, लाखों लोगों को काम पर रखकर भी उसकी भरपाई नहीं कर सकेंगे।
भारत में हमें नौकरी छोड़ने के बाद भी अपने एम्प्लॉयर्स के संपर्क में रहना सिखाया गया है। इसलिए नहीं कि उन्हें हमारी या हमें उनकी जरूरत है, बल्कि इसलिए कि हम अपनी कर्मस्थली के साथ ऐसा रिश्ता स्थापित करते हैं, जिसे भूल पाना लगभग नामुमकिन है। हालाँकि, एक प्रथा हमारे देश में पूँजी जमा करने की भी है, जिससे एलन के इस निकाले से हम भारतीयों को आर्थिक तौर पर उतना फर्क न पड़े, जितना कि अन्य को पड़ सकता है।
एक गुजारिश उन तमाम बड़ी कम्पनीज़ से भी है कि इसे प्रथा न बनने दें, क्योंकि भारतीय जब भी किसी नई जगह से जुड़ते हैं, भावनाओं के साथ जुड़ते हैं। दो-चार महीनों या कुछ वर्षों में कंपनी का साथ छोड़ने की मंशा भारतीयों में नहीं होती, वे दिल से जुड़कर कंपनी में काम करते हैं, और बदले में वही भावना कंपनी से चाहते हैं। चंद रुपयों की मोहलत देकर ऐसे एम्प्लॉयीज़ का निकाला कर देना मैं उनकी भावनाओं से खिलवाड़ से अधिक कुछ नहीं मानता। इसलिए उनकी भावनाओं को आहात, मेरे मायनों में किसी कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। विदेशों का नहीं पता, मेरे भारत में ऐसी कुप्रथा कभी नहीं आना चाहिए।