लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पत्रकार को मिली बड़ी राहत, मिला 2 लाख का मुआवजा

Update: 2022-03-27 03:14 GMT

यूपी। एटा (Etah) जनपद के एक पत्रकार को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पुलिस (Police) द्वारा फर्जी मुकदमे में फंसाने के बाद बड़ी राहत मिली है. इस मामले में हथकड़ी लगाने पर मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) ने आदेश दिया था. जिसके बाद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार ने दो लाख रुपये की अंतरिम राहत के तौर पर मुआवजा दिया है. वहीं मुआवजे की राशि को दोषी पुलिस कर्मियों के वेतन से काटने के निर्देश दिए हैं.

यूपी की समाजवादी पार्टी की सरकार में पुलिस ने एटा जनपद के जैथरा थाना क्षेत्र व कस्बा के निवासी पत्रकार सुनील कुमार को झूठे मुकदमे में हथकड़ी लगाकर जेल भेज दिया था. कहते हैं कि कानून के हांथ बहुत लंबे होते हैं. एक न एक दिन गलत काम करने वाला चाहे जितना प्रभावशाली क्यों न हो वो कानून के शिकंजे में फंस ही जाते हैं. एटा जनपद के जैथरा कस्बा निवासी स्वतंत्र पत्रकार सुनील कुमार को झूठे मुकदमे में अवैधानिक गिरफ्तारी एवं हथकड़ी लगाकर जेल भेजने के मामले में उनके द्वारा लड़ी गयी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ऐसा ही हुआ.

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में 6 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिर सुनील को न्याय मिला. वो भले ही अंतरिम राहत के रूप में मिला हो. आयोग ने न सिर्फ उनकी दलीलों को स्वीकार किया, अपितु मानवाधिकार हनन पर प्रदेश सरकार को मुआवजा देने का भी आदेश दिया. जिसके बाद 2 लाख का मुआवजा अंतरिम राहत के तौर पर दिलवाया. राज्यपाल की स्वीकृति के बाद शासन ने पीड़ित पत्रकार को दो लाख मुआवजा प्रदान कर भुगतान के साक्ष्य उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे. एसएसपी एटा उदय शंकर सिंह ने मुआवजा की कार्रवाई शीघ्र पूर्ण कराकर पीड़ित के खाते में ट्रेजरी से दो लाख रुपये का भुगतान करा दिया है. पीड़ित को उक्त राशि अंतरिम राहत के रूप में प्रदान की गई है. उत्तर प्रदेश में इस तरह का ये पहला मामला है.

क्या है मामला

दरअसल, जैथरा थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष कैलाश चन्द्र दुबे ने 22 जून 2016 की कथित छेड़खानी की घटना में नेहरू नगर के पत्रकार सुनील कुमार को साजिश के तहत झूठा फंसाया. जिसके बाद 23 जून को अवैधानिक तरीके से गिरफ्तार कराकर अगले दिन 24 जून को हथकड़ी में ले जाकर जेल भेज दिया था. जेल से छूटने के बाद पीड़ित ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली में पूरे प्रकरण की शिकायत करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की थी. साथ ही हथकड़ी लगाकर ले जाने को गरिमामय जीवन जीने के अधिकार के हनन पर मुआवजा की मांग उठाई. आयोग ने तत्समय एसएसपी, एटा को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की. पुलिस की रिपोर्ट के बाद आयोग ने पूरे प्रकरण की जांच अपनी टीम से कराई.

क्या था आदेश

पीड़ित पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के कई महत्वपूर्ण आदेशों के साथ दलील देकर पुलिस के कृत्य को संवैधानिक एवं मानवाधिकार के प्रतिकूल बताया. छह साल चली लंबी जांच के बाद आयोग ने जिले के तत्कालीन एसएसपी अजय शंकर राय, उस समय जैथरा में तैनात रहे थानाध्यक्ष कैलाश चंद्र दुबे और विवेचक मदन मुरारी द्विवेदी को दोषी पाया. इसके बाद संबंधितों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए डीजीपी को आदेश दिया. साथ ही प्रदेश के मुख्य सचिव को पीड़ित पत्रकार को दो लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद शासन ने एसएसपी को मुआवजा राशि का बजट भेजते हुए पीड़ित पत्रकार को 10 दिवस में मुआवजा राशि का भुगतान कर साक्ष्य उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उदय शंकर सिंह ने 22 मार्च को पीड़ित के खाते में दो लाख रुपये की राशि का ट्रेजरी से भुगतान करा दिया है.


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