एक ऐसा सैनिक जिसकी होती हैं मंदिर में पूजा, जानें बाबा हरभजन सिंह का रहस्य?
आम लोग भी बाबा के दर्शन-पूजन के आते हैं.
नई दिल्ली: भारत में देवी-देवताओं के अनेक मंदिर है लेकिन क्या आपने कभी किसी सैनिक का मंदिर देखा है? अगर नहीं तो हम ऐसे एक जांबाज सैनिक की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनके नाम पर एक मंदिर स्थापित किया गया और भारतीय सैनिक इनकी पूजा करते हैं। आम लोग भी बाबा के दर्शन-पूजन के आते हैं।
30 अगस्त 1946 को पंजाब के कपूरथला जिले में एक सिख परिवार में जन्मे बाबा हरभजन सिंह 20 वर्ष की छोटी उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए। सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद बाबा हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट में शामिल हो गए, जहां उन्होंने एक कुशल सैनिक के तौर पर अपने कर्तव्यों का बखूबी पालन किया।
साल 1968 में 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम सीमा पर उनकी तैनाती हुई। इसी दौरान खच्चर पर सवार होकर जाते समय तेज बहाव की धारा में डूबकर उनकी मृत्यु हो गई। पानी का तेज बहाव हरभजन सिंह के शरीर को बहाकर दूर ले गया, शव तीन दिन बाद मिला।
ऐसा कहा जाता है कि बाबा हरभजन सिंह अपने साथी सैनिक के सपने में आए और बताया कि उनका मृत शरीर कहां पर है। जिसके बाद भारतीय सेना ने जब खोजबीन शुरू की तो उनका शव उसी जगह पर मिला, जो जगह उन्होंने अपने साथी को सपने में बताई थी। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। कहते हैं कि हरभजन सिंह ने सपने में अपनी समाधि बनाने की की इच्छा भी जाहिर की थी। ऐसे में 14 हजार फीट की ऊंचाई पर जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच उनकी समाधि बनाई गई।
हरभजन सिंह के समाधि के साथ-साथ उनका मंदिर भी स्थापित किया गया। यह मंदिर भी यहीं है जहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
सिक्किम में बाबा हरभजन सिंह मंदिर तीन कमरों वाले एक बंकर के अंदर बना हुआ है। मुख्य कमरे में हरभजन सिंह के साथ-साथ अन्य हिंदू देवताओं और सिख गुरुओं की एक बड़ी तस्वीर है। वहीं दूसरे कमरे में बाबा हरभजन सिंह का निजी कमरा है, जिसमें उनके सभी निजी सामान रखे गए हैं। उसमें साफ-सुथरी वर्दी, पॉलिश किए जूते, अच्छी तरह से रखा हुआ बिस्तर और अन्य घरेलू सामान शामिल हैं।
मंदिर के आखिरी कमरे में एक कार्यालय और एक स्टोर रूम है। जिसमें बाबा हरभजन सिंह को अर्पित की गई अन्य वस्तुएं पड़ी रहती है। उनका कमरा और वर्दी हर रोज साफ की जाती है। कहा जाता है कि रात को उनके जूते पर कीचड़ लगा दिखाई देता है।
बाबा हरभजन सिंह मंदिर के अनुयायियों का मानना है कि यहां रखा गया पानी एक सप्ताह के बाद पवित्र हो जाता है और किसी भी बीमारी को ठीक कर सकता है। इसके अलावा, यहां रखी गई चप्पलें पैरों की समस्याओं आदि से पीड़ित रोगियों की मदद करती हैं। बहुत से लोग जो हरभजन बाबा मंदिर नहीं जा पाते हैं, वे उन्हें धन्यवाद देने या अपनी समस्याओं को हल करने के लिए मदद मांगने के लिए पत्र भेजते हैं।
बाबा हरभजन सिंह के चमत्कार के किस्से सुनने को मिलते है। उन्हें कई बार गश्त लगाते हुए और अजनबी लोगों से बात करते हुए सुना जाता है। सीमा पर भारतीय सैनिक गश्त में जरा सी भी लापरवाही बरतते है तो वो अदृश्य तौर पर जवानों को आगाह करते है। कई सैनिक जो वर्दी के मामले में अनुशासनहीन हैं या जो रात में गश्त करते समय सो जाते हैं, उन्हें अदृश्य हरभजन सिंह थप्पड़ मारकर जगाते हैं। सैनिकों कहते हैं कि वो जब उठकर चारों ओर देखते हैं तो उन्हें कोई नहीं दिखता।
बाबा हरभजन सिंह की मृत्यु के दशकों बाद भी भारतीय सैनिक उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं। जिस क्षेत्र में बाबा हरभजन सिंह का शव मिला था और जहां मंदिर है, वहां तैनात सेना की टुकड़ियां जब किसी खतरनाक मिशन पर जाती हैं, तो बाबा का आशीर्वाद जरूर लेती हैं। ऐसा माना जाता है कि बाबा हमेशा अपने सैनिकों को विदेशी देशों से होने वाले किसी भी संभावित हमले से पहले ही आगाह कर देते हैं।
बाबा की सेवा और आध्यात्मिक शक्ति के सम्मान में भारतीय सेना ने उन्हें मानद कैप्टन के रूप में पदोन्नत किया था। बाबा हरभजन सिंह का वेतन उनके परिवार तक हर महीने पहुंचाई जाती थी। वार्षिक छुट्टी का भी सेना ने पूरा ख्याल रखा और बकायदगी से उन्हें छुट्टी दी जाती रही। वो तब समाप्त हो गईं जब वह सेना से काल्पनिक रूप से सेवानिवृत्त हो गए।
हर साल 11 सितंबर को हरभजन सिंह को 2 महीने की छुट्टी दी जाती थी ताकि वह अपने गृहनगर जा सकें। इस दिन सेना उनके सामान को सिलीगुड़ी के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन तक ले जाती थी और फिर ट्रेन से उनके गृहनगर तक ले जाती थी। हर साल उनके नाम पर एक बर्थ आरक्षित की जाती थी और पूरी यात्रा के लिए उनकी सीट खाली छोड़ी जाती थी। हरभजन सिंह की 2 महीने की छुट्टी के दौरान सेना हाई अलर्ट पर रहती थी। भारतीय सेना के प्रति उनकी महान सेवा और समर्पण के कारण बाबा हरभजन सिंह को उनकी मृत्यु के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।