एसिड अटैक का हैरान करने वाला मामला, सन्न रह गया इलाका

दो बहनों पर एक जग तेजाब फेंका.

Update: 2024-04-06 06:58 GMT
नई दिल्ली: दिल्ली के जाकिर नगर में रहने वाली दो बहनें दूसरों की दया पर जीने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें कमाना नहीं आता, शरीरिक अपंगता है बल्कि वे एक सिरफिरे के गुनाहों की सजा भुगत रही हैं। 14 साल तक कानूनी लड़ाई के बाद उन्हें न्याय की उम्मीद थी लेकिन उनकी उम्मीदों को तब झटका लगा जब दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी करने का फैसला बरकरार रखा। हालांकि दोनों बहनों को मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
करीब 14 साल पहले दक्षिणपूर्वी दिल्ली के जाकिर नगर में अपने घर लौट रही दो बहनों पर एक जग तेजाब फेंक दिया गया था। तब से दोनों अपराधियों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। हालांकि मंगलवार को हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी करने का फैसला बरकरार रखा, जिससे उन्हें धक्का लगा। बड़ी बहन का नाम समर है जो अब 35 साल की हो चुकी है। उसने कोर्ट के फैसले के बाद कहा, 'हम न केवल कानूनी लड़ाई बल्कि जीने की इच्छा भी हार गए हैं।' एक साल छोटी बहन झावेरिया ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों ने अपराध किया वे आजाद घूम रहे हैं लेकिन हमें दोस्तों और परिवार से एक कमरे में बंद रहने की सजा मिली है। इसके अलावा हम जीवन भर के लिए बेरोजगार हो गए हैं।'
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के आरोपियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि अभियोजन पक्ष शक के अलावा अपना मामला साबित करने में सक्षम नहीं रहा है। पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'न केवल पीड़ितों के बयान, बल्कि जिस तरह से जांच की गई, वह भी अभियोजन के मामले को डिमॉलिश कर देता है।' पीड़ित बहनों का कहना है कि वे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में जमानत देंगी।
2009 में पीड़ितों पर इसलिए एसिड फेंका गया था क्योंकि पड़ोसी ने एक बहन को शादी का प्रस्ताव दिया था, जिसे उसने नकार दिया। घटना वाले दिन, दोनों बहनें झावेरिया द्वारा रिक्शे पर चलाए जाने वाले ब्यूटी पार्लर से घर लौट रही थीं, तभी मोटरसाइकिल पर आए दो लोगों ने उनपर एसिड फेंक दिया। एक बहन ने दावा किया, 'हमपर हमला होने के कुछ घंटों बाद, आरोपियों ने हमें धमकी दी, लेकिन शारीरिक दर्द के बावजूद हमने झुकने से साफ मना कर दिया और उनके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला लिया।'
एमबीए फर्स्ट ईयर छात्रा समर का सिर्फ एक सपना था - नौकरी ढूंढना, शादी करना और एक परिवार बसाना। समर ने कहा, 'एसिड ने न केवल मेरे चेहरे को बल्कि मेरे सपनों को भी बर्बाद कर दिया। पिछले कुछ सालों में वह अपने चेहरे को ठीक करने के लिए 26 सर्जरी करा चुकी हैं। इनमें से हर सर्जरी काफी पीड़ादायक रही है। लेकिन जिंदा रहने का मानसिक ट्रॉमा (आघात) शारीरिक ट्रॉमा से कहीं ज्यादा है। अटैक में दोनों की आंखों की रोशनी चली गई। झावेरिया ने कहा, 'हर महीने हमें रिश्तेदारों और दोस्तों से आर्थिक मदद मांगनी पड़ती है।'
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