5 माह की बच्ची को लगेगा 22 करोड़ का इंजेक्शन...परिवार वाले ऐसे जुटा रहे पैसे
पांच महीने की मासूम सी बच्ची तीरा कामत मुंबई के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: पांच महीने की मासूम सी बच्ची तीरा कामत मुंबई के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है, लेकिन उसके माता-पिता उसकी जिंदगी बचाने के लिए काफी जद्दोजहद कर रहे हैं। दरअसल तीरा को एसएमए- टाइप1 बीमारी है और इलाज के लिए 22 करोड़ के Zolgensma नाम के इंजेक्शन की जरूरत है। डॉक्टर का कहना है कि इस बीमारी के कारण इंजेक्शन नहीं लगने पर बच्ची की जिंदगी सिर्फ 18 महीने तक ही बच सकती है, यही कारण है कि अमेरिका से मंगाया गया इंजेक्शन बच्ची के लिए काफी जरूरी है।
बच्ची के परिवार ने कुछ इस तरह से जुटाए पैसे
बच्ची के परिवार ने करीब 16 करोड़ रुपये जुटा लिए हैं। इसके लिए बच्ची के पिता ने सोशल मीडिया पर एक पेज बनाया और इस पर क्राउड फंडिंग शुरू कर दी। यहां अच्छी प्रतिक्रिया मिली और अब तक करीब 16 करोड़ रुपए इकट्ठा हो चुके हैं। अब परिवार को उम्मीद है कि जल्द ही इंजेक्शन अस्पताल आ जाएगा। वहीं इस पर करीब 6 करोड़ रुपए टैक्स अलग से चुकाना होता है लेकिन महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की चिट्ठी पर पीएम नरेंद्र मोदी ने टैक्स माफ कर दिया है।
कितनी खतरनाक है यह बीमारी?
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के लिए जिम्मेदार जीन शरीर में तंत्रिका तंत्र के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक प्रोटीन के निर्माण को बाधित कर देता है, जिसके फलस्वरूप तंत्रिका तंत्र नष्ट हो जाता है और पीड़ित बच्चों की मौत हो जाती है। दरअसल, यह मांसपेशियों को खराब कर देने वाली एक दुर्लभ बीमारी है। जब यह बीमारी गंभीर हो जाती है तो बच्चों के दो साल के होने से पहले ही उनकी मौत हो जाती है।
तीरा को दूध पीने पर भी दम घुटने लगता था
तीरा के पिता मिहिर बताते हैं कि तीरा का जन्म अस्पताल में ही हुआ। जब वह घर आई तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जल्दी ही उसमें बीमारी के लक्षण उभरने लगे। मां का दूध पीते वक्त तीरा का दम घुटने लगता था और वह एकदम बेचैन हो जाती थी। शरीर में पानी की कमी होने लगती थी। एक बार तो कुछ सेकंड के लिए उसकी सांस थम गई थी।
इस बीमारी के लक्षण क्या हैं?
जो बच्चे स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 से पीड़ित होते हैं, उनकी मांसपेशियां कमजोर होती हैं, शरीर में पानी की कमी होने लगती है और स्तनपान करने में और सांस लेने में दिक्कत होती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वो हिलने-डुलने लायक तक भी नहीं रहती हैं।
जिन बच्चों में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं, वे धीरे-धीरे इतने अक्षम हो जाते हैं कि उन्हें सांस तक लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ जाती है। हालांकि लंबे समय तक बच्चों को वेंटिलेटर पर भी नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि इससे ट्यूब में संक्रमण फैलने का खतरा होता है।