नई दिल्ली: डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने स्पाइसजेट कंपनी के 90 पायलट्स को बोइंग 737 मैक्स (Boeing 737 MAX) विमान उड़ाने से रोक दिया है. इन पायलट्स को अब एक ट्रेनिंग से गुजरना होगा. इसके बाद ही इन्हें Boeing 737 MAX उड़ाने की अनुमति दी जाएगी. DGCA के मुताबिक, इन पॉयलट्स की शुरुआती ट्रेनिंग सही तरीके से नहीं हुई है. जांच के बाद सभी को दोबारा प्रशिक्षण देने का फैसला किया गया.
DGCA के डायरेक्टर जनरल अरुण कुमार ने आज तक को बताया कि इतनी बड़ी खामी पकड़ में आने के बाद एयरलाइन कंपनी का पायलट प्रशिक्षण भी जांच के दायरे में है. इस गलती के पीछे जो भी जिम्मेदार होगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
सूत्रों के मुताबिक ट्रेनिंग के दौरान स्टिक शेकर नामक उपकरण ने काम करना बंद कर दिया था. यह उपकरण विमान के जोखिम में होने पर कॉलम को वाइब्रेट करता है और तेज आवाज निकालता है.
बता दें कि 13 मार्च 2019 को इथियोपियाई एयरलाइंस का बोइंग 737 मैक्स विमान राजधानी अदीस अबाबा के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इस हादसे में 4 भारतीयों समेत कुल 157 लोग मारे गए थे. इस हादसे के बाद DGCA ने इस प्लेन्स को उड़ाने पर बैन लगा दिया था. DGCA ने पिछले साल अगस्त में बोइंग के सॉफ्टवेयर से संतुष्ट होने के बाद यह बैन हटाया गया है. बैन हटाते समय यह शर्त रखी गई थी कि इस विमान को उड़ाने वाले पायलट को विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी.
स्पाइसजेट के प्रवक्ता ने पायलट्स पर लगी रोक के आदेश पर सहमति जताई है. कंपनी ने कहा कि इस प्रतिबंध से बोइंग 373 मैक्स के संचालन पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा. स्पाइसजेट वर्तमान में 11 मैक्स विमानों का संचालन कर रहा है. इन विमानों को उड़ाने के लिए 144 पायलटों की जरूरत पड़ती है. स्पाइसजेट का दावा है कि उनके पास इस विमान को चलाने के लिए 650 प्रशिक्षित पायलट्स में से 560 उपलब्ध हैं. बता दें कि स्पाइसजेट एकमात्र भारतीय एयरलाइन है, जिसके बेड़े में मैक्स विमान शामिल हैं.
शेयर बाजार के दिग्गज निवेशक राकेश झुनझुनवाला, विमान क्षेत्र के दिग्गज आदित्य घोष और विनय दुबे की नई एयरलाइन अकासा एयर ने पिछले साल नवंबर में बोइंग के साथ 72 मैक्स विमानों की खरीद के लिए समझौते किया था. हालांकि, अकासा एयर को अभी तक इनमें से कोई भी विमान नहीं मिला है.
इंडियन कमर्शियल पायलट एसोसिएशन (ICPA) ने टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन से फुल पे देने की मांग की है. ICPA ने कहा कि कोरोना के दौरान महामारी का हवाला देते हुए उनके वेतन में 55 प्रतिशत की कटौती की गई थी. एसोसिएशन ने दावा किया है कि उनके अन्य भत्तों में भी भारी कटौती की गई थी. संस्था ने कहा कि उन्होंने पिछले मालिक से पूरा भुगतान फिर से बहाल करने की अपील की थी. लेकिन इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी गई. ICPA ने कहा कि अब सैलरी में कटौती जारी रखने के पीछे कोई तर्क नहीं है.