प्रत्येक 100 व्यक्ति पर 3 आवारा कुत्ते: यूपी के नागरिक निकायों के लिए बड़ी समस्या
नोएडा (आईएएनएस)| देश में अगर आवारा कुत्तों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा आवारा कुत्ते उत्तर प्रदेश में हैं और इन कुत्तों की संख्या ज्यादा होने की वजह से इनसे होने वाले मामले भी लगातार बढ़ते रहते हैं। नगर विकास विभाग के मुताबिक ज्यादा संख्या होने की वजह से कुत्ता काटने के मामले ज्यादा बढ़ जाते हैं। उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों की संख्या की बात करें तो यह संख्या 20,59,261 है जबकि पालतू कुत्तों की संख्या उनके मुकाबले काफी कम है जिनकी संख्या 4,22,129 है। राज्य सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति 100 व्यक्तियों पर तीन आवारा कुत्तों की संख्या गिनी जाती है।
लेकिन यह संख्या लगातार बढ़ने से मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। अब राज्य सरकार की चिंता है कि बढ़ते हुए मामलों पर रोक लगाना है तो आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर भी रोक लगानी होगी।
आवारा कुत्तों की संख्या की बात की जाए तो उसमें उत्तर प्रदेश को नंबर 1 बताया गया है। उत्तर प्रदेश में यह संख्या 20.59 लाख है। उड़ीसा में यह संख्या 17.34 लाख है। महाराष्ट्र में ये संख्या 12.76 लाख है तो राजस्थानी में यह संख्या 12.75 लाख है, कर्नाटक में 11.41 लाख, पश्चिम बंगाल में 11.04 लाख है।
मध्य प्रदेश में ये संख्या 10.09 लाख है तो आंध्र प्रदेश में 8.64 लाख है। बिहार में 6.96 लाख आवारा कुत्तों का आंकड़ा मिला है। इन आंकड़ों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस रेट में कितने ज्यादा आवारा कुत्ते हैं जिसकी वजह से उनके काटने और उनसे होने वाले हादसों के मामले बढ़ते हैं।
ज्यादातर मामलों में आक्रामकता का सीधा संबंध भूख से होता है। पहले लगभग हर हिंदू परिवार में पहली रोटी गाय और आखिरी कुत्ते की निकलती थी। बचा हुआ खाना डस्टबिन में नहीं, घर के बाहर सड़क किनारे रख दिया जाता था। बेजुबानों के प्रति क्रूरता नहीं बल्कि करुणा का पाठ पढ़ाया जाता था। आज ऐसा करने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।
कुत्तों की आबादी बढ़ रही है और खाना कम हो रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि स्ट्रीट डॉग्स की आबादी तेजी से बढ़ी है और इसके लिए सरकारी व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं। हर साल करोड़ों रुपये नसबंदी पर खर्च होते हैं, तो फिर इनकी आबादी कैसे बढ़ रही है? इस सवाल का जवाब नहीं मिला है।
रीलोकेशन यानी स्थानांतरण की वजह से भी कुत्तों के आक्रामक होने और काटने के मामले बढ़ते हैं। कभी पैसों के लालच और कभी ऊपरी दबाब के चलते नगर निगम कर्मचारी कुत्तों को उनके मूल स्थान से उठाकर किसी दूसरे इलाके में छोड़ देते हैं, नतीजतन वो घबरा जाते हैं और इसी घबराहट में किसी को काट लेते हैं। कानून बनाने वाले को इसका आभास होगा, इसलिए कानून में रीलोकेशन प्रतिबंधित है।
नई-नई कॉलोनियां बन रही हैं और कुत्तों के आवासों पर इंसानी कब्जा हो रहा है। हम कुत्तों को उनके इलाकों से निकाल रहे हैं, ये सब बड़ी वजह हैं कुत्तों के काटने के मामले में हो रही बढ़ोतरी में।
अब बात आती है समाधान की। इसके लिए सबसे पहला कदम होना चाहिए, सख्ती से नसबंदी। जब आबादी सीमित होगी, तो संघर्ष की आशंका भी सीमित रहेगी।
दूसरा नंबर है, भोजन और पानी की उपलब्धता। आप अपने पांच किलोमीटर के दायरे में घूमकर देख लीजिए, ऐसा कोई इंतजाम कहीं नजर नहीं आएगा। गर्मी के दिनों में ये बेजुबान पानी की एक-एक बूंद को तरसते रहते हैं। खाना-पानी मिलेगा, तो आक्रामकता अपने आप कम होगी।
तीसरा नंबर है, नगर निगम कर्मियों को कड़े निर्देश देते हुए रीलोकेशन पर रोक लगाना। चौथा नंबर है, लोगों को जागरूक कर कम्युनिटी डॉग की अवधारणा को अमल में लाना। मतलब है कि सोसाइटी या कॉलोनी के लोग मिलकर कुछ डॉग्स को अडॉप्ट कर लें, उनके खान-पान का ख्याल रखें, उन्हें प्यार दें तो न केवल बेसहारा कुत्तों की आबादी घटेगी बल्कि इसके कई फायदे होंगे। मसलन, उस इलाके में दूसरे कुत्तों की एंट्री नहीं होगी क्योंकि कुत्तों को अपना एक इलाका होता है। डॉग बाइट की घटनाओं में कमी आएगी और कॉलोनियों को मुफ्त के चौकीदार भी मिल जाएंगे।