2022: संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अवसर पर एक खास मैसेज

शांति और विकास में शिक्षा के महत्व को परिभाषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव अपनाया है

Update: 2022-01-24 08:01 GMT

 जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  शांति और विकास में शिक्षा के महत्व को परिभाषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) ने साल 2018 में हर वर्ष 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव अपनाया था. संयुक्त राष्ट्र के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक गरीबी है. तीसरी दुनिया के कई देशों में गरीबी और अशिक्षा का आंकड़ा बिल्कुल एक जैसा है. जिससे पता चलता है कि अशिक्षा का एक बड़ा कारण गरीबी है. संयुक्त राष्ट्र गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम कर रहा है. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का ध्यान इस पर भी है कि गरीबी का शिक्षा पर असर कम से कम पड़े. इस इंटरनेशनल डे ऑफ एजुकेशन 2022 के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने एक खास मैसेज दिया है.Also Read - UPTET: CM योगी ने दिए एग्जाम अथॉरिटी को निर्देश, 23 जनवरी को ही होगी यूपीटीईटी परीक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव का मैसेज
आज हम पहला अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस मना रहे हैं. शिक्षा जीवन को बदल देती है. संयुक्त राष्ट्र की शांति दूत मलाला यूसुफजई ने एक बार कहा था, 'एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम दुनिया बदल सकते हैं.' नेल्सन मंडेला ने शिक्षा को 'दुनिया बदलने के लिए शिक्षा को सबसे शक्तिशाली हथियार' बताया था. 
संयुक्त राष्ट्र में अपनी सेवाएं देने से पहले और अपने देश में भी सार्वजनिक जीवन में आने से पहले मैं एक अध्यापक था. लिस्बन की मलिन बस्तियों में मैंने देखा कि शिक्षा एक ऐसा इंजन है जो गरीबी उन्मूलन और शांति ला सकता है. आज शिक्षा सतत विकास लक्ष्यों के केंद्र में है. 
हमें असमानताओं को कम करने और स्वास्थ्य में सुधार के लिए शिक्षा की जरूरत है. हमें लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए और बाल विवाह की कुप्रथा के खात्मे के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता है. हमें अपने ग्रह (धरती) के संसाधनों की रक्षा के लिए भी शिक्षा की जरूरत है. हमें अभद्र भाषा, नफरत भरे बोल, बाहरी लोगों के खिलाफ दुर्भावना व असहिष्णुता और वैश्विक नागरिकता को बढ़ावा देने के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता है.
आज भी 26.2 करोड़ बच्चे, किशोर और युवा स्कूलों से दूर हैं और इनमें से ज्यादातर संख्या लड़कियों की है. इसके अलावा करोड़ों बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल तो जाते हैं, लेकिन वह बुनियादी बातें भी नहीं सीख पाते हैं. यह उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है. आज हम यह बर्दाश्त नहीं कर सकते कि बच्चों और युवाओं की एक पीढ़ी ऐसी हो जिसे 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा के लिए जरूरी कौशल हासिल न हो. यही नहीं हम अपनी आधी जनसंख्या को पीछे भी नहीं छोड़ सकते हैं.
समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए हमें सतत विकास लक्ष्य 4 को आगे बढ़ाने के लिए और भी बहुत कुछ करना चाहिए. शिक्षा पीढ़ियों से चली आ रही गरीबी के चक्र को तोड़ सकती है और उसे उलट भी सकती है. अध्ययनों से पता चला है कि यदि सभी लड़के और लड़कियां सेकेंडरी एजुकेशन पूरी कर लेते हैं तो 42 करोड़ लोगों को गरीबी के कुचक्र से बाहर निकाला जा सकता है.
आइए हम शिक्षा को सार्वजनिक भलाई के रूप में प्राथमिकता दें. सहयोग, भागीदारी और वित्त पोषण के जरिए शिक्षा को बढ़ावा दें. और हमें ध्यान रखना है कि कोई भी शिक्षा से दूर न रह जाए.


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