रिक्शा चालक के 13 साल का बेटा बना हॉकी का स्टार खिलाड़ी

लखनऊ-बाराबंकी सीमा पर स्थित सफेदाबाद की रहने वाली मालती जो पेशे से रिक्शा चालक है उसने अपने 13 वर्षीय बेटे को हॉकी का स्टार खिलाडी बनाया है.

Update: 2021-01-17 09:08 GMT

करीब तेरह-चौदह साल पहले किन्ही कारणों से पति से अलग हुईं। रहने को जगह नहीं थी तो अपने तीन माह के बेटे को लेकर ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज के बगल में दीवार से सटाकर टीन डालकर रहने लगीं। मेहनत-मजदूरी जैसे कुछ काम किए। गुजारा नहीं हुआ तो ई-रिक्शा किराये पर लेकर चलाया। आमदनी हुई तो खुद का ई-रिक्शा खरीद लिया। इसी आमदनी को धीरे-धीरे बेटे आलोक को हॉकी खिलवाई। बेटा देखते-देखते ही देश में सब जूनियर का बेहतरीन खिलाड़ी बन गया। यह कहानी है... मालती की।

मालती यूं तो लखनऊ-बाराबंकी सीमा पर स्थित सफेदाबाद की रहने वाली हैं। पिता ने विवाह कर दिया कि बिटिया अब सुखी रहेगी। पर ऐसा नहीं हुआ। पति से अनबन हुई तो वह तीन माह के बेटे के साथ अलग रहने लगीं। बेटे और खुद का पेट भरने के लिए उन्होंने कई काम किए।

मालती बताती हैं कि शुरुआत में जब वह रिक्शा चलाने निकली तो उनके पिता खूब रोए। तो मालती ने उन्हें समझाया कि किसी काम में कोई बुराई नहीं है। लड़कियां अब मर्दों की तरह काम करती हैं। धीरे-धीरे पिता को यह बात समझ में आ गई। 2014 में उन्होंने खुद का रिक्शा खरीद लिया। तब से उनके परिवार का खर्च इसी से चल रहा है।

उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि उनका बेटा खूब तरक्की करे और बड़ा आदमी बने। पर उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह उसे बढ़िया शिक्षा और कोई कोर्स करा पाती है। ऐसे में घर से कुछ दूरी पर केडी सिंह बाबू सोसायटी की हॉकी अकादमी चलती है। इसमें ओलंपियन सैयद अली, सुजीत कुमार, साई प्रशिक्षक राशिद जैसे लोग ट्रेनिंग देते हैं। सो उन्होंने बेटे को हॉकी खिलवानी शुरू की। बेटा देखते-देखते बेहतरीन फारवर्ड बन गया। उत्तर प्रदेश की सब जूनियर हॉकी टीम का स्टार खिलाड़ी हो गया।

अखिल भारतीय केडी सिंह बाबू हॉकी प्रतियोगिता में पिछले तीन वर्षों से बेहतरीन खेल दिखा रहा है। हर मैच में तीन-चार गोल उसके नाम जरूर होते हैं। उसकी इसी काबिलियत को देखते हुए पंजाब की चीमा अकादमी ने उसे अपने यहां खेलने का न्यौता दिया है। मालती कहती हैं मन तो नहीं कर रहा कि बेटे को भेजें। पर उसके भविष्य को देखते हुए उसे भेजना पड़ेगा।

मालती ने बताया कि शुरुआत में मर्दों के बीच रिक्शा चलाना बेहद मुश्किल काम था। रिक्शे वाले तरह-तरह की बातें करते थे। पर, धीरे-धीरे इसकी आदत हो गई है। कई बार नजरंदाज कर देती हैं। कई बार वहीं सड़क पर करारा जबाव देती हैं। वह चाहती हैं कि उनका एक खुद का घर हो। जहां वह इज्जत की जिन्दगी जीएं।

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