2020 में सामूहिक आत्महत्याओं के 121 मामले, पिछले साल कर्ज से तंग आकर इतने लोगों ने किया सुसाइड

Update: 2021-12-13 02:58 GMT

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सूदखोरी ने एक पूरे हंसते-खेलते परिवार को खत्म कर दिया. पहले कर्ज और फिर उस पर ब्याज दे-देकर परेशान हुए जोशी परिवार ने साथ में जहर खाया और एक-एक कर सभी दम तोड़ते चले गए.

25 नवंबर की रात को परिवार के पांचों सदस्यों ने जहर पी लिया था. 26 नवंबर को संजीव जोशी की छोटी बेटी पूर्वी और मां नंदिनी की मौत हो गई. 27 को संजीव और उनकी बड़ी बेटी ग्रीष्मा ने दम तोड़ दिया. 29 को संजीव की पत्नी अर्चना ने आखिरी सांस ली. 5 दिन में परिवार के 5 सदस्यों की मौत हो गई और एक हंसते-खेलते परिवार का यूं दर्दनाक अंत हो गया.
भारत में कर्ज या आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या करना अब बड़ी बात भी नहीं माना जाता है. मसलन, इसी साल बिहार के सुपौल में भी एक ही परिवार के 5 लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. लोगों ने बताया था कि आर्थिक तंगी की वजह से परिवार परेशान रहता था. इसी तरह जून में यूपी के शाहजहांपुर में एक ही परिवार के 4 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. पहले पति-पत्नी ने अपने दोनों बच्चों को फांसी लगाई और फिर खुद भी फंदे पर झूल गए. सुसाइड नोट में आर्थिक तंगी को वजह बताया गया.
ये तो कुछ ही मामले हैं. इंटरनेट पर ढूढेंगे तो ऐसे ढेरों मामले मिल जाएंगे जिसमें आर्थिक तंगी और गरीबी ने पूरा का पूरा परिवार ही खत्म कर दिया. केंद्र सरकार की एजेंसी है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो. इस एजेंसी की सुसाइड पर रिपोर्ट आई है. ये रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल यानी 2020 में सामूहिक आत्महत्याओं के 121 मामले सामने आए जिनमें 272 लोगों की जान चली गई. 2019 की तुलना में मामले 68% और मृतकों की संख्या 51% ज्यादा है.
2020 में सामूहिक आत्महत्याओं के मामले बढ़ने की एक वजह कोरोना भी हो सकती है. कोरोना संक्रमण की वजह से देश भर में लॉकडाउन भी लगा. सैकड़ों-हजारों-लाखों लोगों की नौकरियां भी गईं. इन सबके चलते आर्थिक बोझ भी बढ़ा और तंगी भी. हो सकता है कि सामूहिक आत्महत्याओं के मामलों में अचानक इतनी तेजी आने की एक वजह ये भी हो. इससे पहले 2014 में 160 मामले सामने आए थे. तब 275 लोगों की जान गई थी.
NCRB के ही आंकड़े बताते हैं कि कर्ज से तंग आकर हर साल हजारों जानें जाती हैं. 2020 में 5 हजार 213 लोग ऐसे थे जिन्होंने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. इस हिसाब से हर दिन औसतन 15 लोगों ने सुसाइड की. हालांकि, 2019 की तुलना में 2020 में थोड़ा सुधार भी हुई. 2019 में 5 हजार 908 लोगों ने कर्ज से तंग आकर खुदकुशी की थी.
संसद के शीतकालीन सत्र में कर्ज से पीड़ित परिवारों की संख्या से जुड़े आंकड़े मांगे गए थे. इसका जवाब वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दिया था. उन्होंने इसके लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के 2012 और 2018 के सर्वे के आंकड़े दिए थे. इसके मुताबिक, 2012 में देश के शहरी इलाकों में 22.4% परिवारों पर कर्ज था. 2018 में भी ये आंकड़ा 22.4% ही रहा. लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा बढ़ गया. 2012 में जहां 31% ग्रामीण परिवार कर्जदार थे तो 2018 में इनका आंकड़ा बढ़कर 35% पहुंच गया. हालांकि, कुछ राज्यों को छोड़ दिया तो ज्यादातर राज्यों के शहरी इलाकों में भी कर्जदार परिवारों का आंकड़ा बढ़ा था.
सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस, पटना में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु कुमार कहते हैं कि वित्तीय साक्षरता की कमी और नीतिगत स्तर पर देर से जागने की आदत के चलते लोग कर्ज के जाल में फंस रहे हैं. जब एक ओर आय कम हो रही है और आसानी से सस्ता कर्ज उपलब्ध है, लोग आने वाले समय में आमदनी सुधर जाने की उम्मीद पर कर्ज उठा लेते हैं. बाद में यह कर्ज मानसिक तनाव देने लगता है और लोग दबाव में टूट जाते हैं.
डॉ. सुधांशु ने बताया कि सबसे जरूरी चीज फाइनेंशियल लिटरेसी है. लोगों को आय और व्यय के बीच संतुलन बनाने का तरीका आना चाहिए. जिनकी आय स्थिर नहीं है, उन्हें क्रेडिट कार्ड, बीएनपीएल, ईएमआई पर शॉपिंग आदि से बचना चाहिए. स्थिर आय वालों को भी यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि ईएमआई उतनी ही रहे, जो मानसिक तनाव का कारण न बने.
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