उत्तराखंड: 56 साल की डिकरी देवी पलायन की वजह से वीरान गांव में अकेले त्योहार मनाती हैं

Update: 2022-03-16 08:57 GMT

चम्पावत न्यूज़: अभी कुछ दिन पहले हमने फूलदेई पर्व मनाया। गांव-गांव में बच्चों की टोलियां घर-देहरी पर फूल बिखेरती नजर आईं, लेकिन लोहाघाट के काकड़ गांव में फूलदेई पर हमेशा की तरह सन्नाटा पसरा रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि पलायन के चलते पूरा गांव खाली हो गया है।

काकड़ गांव बाराकोट ब्लॉक में आता है, जहां आबादी के नाम पर सिर्फ एक महिला डिकरी देवी रहती हैं। सोमवार को डिकरी देवी ने बंजर घरों में से पड़ोस के कुछ घरों की दहलीज पर फूल और अक्षत चढ़ाए। कभी इन घरों में रहने वाले लोगों की सलामती के लिए प्रार्थना की। डिकरी देवी ने बताया कि करीब डेढ़ दशक पूर्व सुविधाओं के अभाव में गांव के लोग पलायन कर गए थे। कांकड़ के अलावा तोक बांस बगौला, किमतोला, बंतोला, खेतड़ी, चमौला में करीब 90 परिवार पलायन कर चुके हैं। इन गांवों में सड़क, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।


मुख्य सड़क से करीब सात किलोमीटर दूर काकड़ क्षेत्र में सिर्फ 56 वर्षीय महिला डिकरी देवी ही रहती हैं। डिकरी देवी हर त्योहार को गांव में अकेले रहकर मनाती हैं। फूलदेई के मौके पर डिकरी देवी ने लोगों के वीरान घरों की देहरियों को फूलों से सजाया। डिकरी देवी कहती हैं कि डेढ़ दशक पहले यहां बहुत चहल-पहल हुआ करती थी। फूलदेई और हर मांगलिक पर्व में यहां के हर घर की देहरियां ऐपण और फूलों से सजी होती थीं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग गांव छोड़कर चले गए। अब डिकरी देवी यहां अकेले रहने को मजबूर हैं। वो गांव में खेती करती हैं। डिकरी देवी को आज भी पलायन कर चुके परिवारों के लौट आने का इंतजार है। वो कहती हैं कि अगर सरकार ने यहां मूलभूत सुविधाएं विकसित करने पर ध्यान दिया होता, तो परिवारों को गांव नहीं छोड़ना पड़ता। पलायन की समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।



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