नासा के महत्वकांशी 'इनसाइट मिशन टू मार्स' प्रोजेक्ट का महत्वपूर्ण सदस्य बना भारत का ये शख्स
नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के महत्वकांशी 'इनसाइट मिशन टू मार्स' प्रोजेक्ट का महत्वपूर्ण सदस्य बना
उत्तराखंड में नैनीताल के एक साधारण से परिवार का रहने वाला रक्षित अमेरिका के नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के महत्वकांशी 'इनसाइट मिशन टू मार्स' प्रोजेक्ट का महत्वपूर्ण सदस्य बन गया है. रक्षित 100 सदस्यीय 'इनसाइट मिशन टू मार्स' में अकेले हिंदुस्तानी हैं, रक्षित के अलावा केवल एनआरआई अंकित बारीक इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं.
रक्षित जोशी ने क्लास 1-10 तक की पढ़ाई सेंट जोसफ कॉलेज से की है. 2008 में वो देहरादून से पास होकर वर्ष 2013 में मुम्बई के सेंट जेवियर पहुंचे. यहां से ग्रेजुएशन करने के बाद वो नैनीताल के डीएसबी कॉलेज में पीजी करने पहुंचे. इस दौरान वो रक्षित एरीज में 'स्टेलर फ्लेयर' पर काम करने लगे. रक्षित की यहां से रुचि प्लेनेटरी साइंस की तरफ बड़ी और वो म्यूनिख विश्वविद्यालय, ईटीए ज़्यूरिक, मैक्सप्लेंक इंस्टिट्यूट में पहुंच गए. एडमिशन मिलने के बाद अक्टूबर 2015 के अंत मे रक्षित ने नासा में ज्वाइन कर लिया. पढ़ाई के दौरान रक्षित को नासा के प्रोजेक्ट 'इनसाइट मिशन टू मार्स' की साइंस टीम में रक्षित को जगह मिल गई.
रक्षित ने बताया वे हर रोज में 12 से 15 घंटे तक काम करते हैं. उन्होंने बताया कि मार्स में धरती की तरह क्रस्ट, मेन्टल और कोर हैं. इसके आकार की गणना पहली बार की गई है. उन्होंने बताया कि मार्स का साइज पृथ्वी से साइज में छोटा है. मंगल ग्रह धरती के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है.
मार्स के 'इनसाइट मिशन टू मार्स' का उद्देश्य
उन्होंने कहा कि मैग्नेटिक फील्ड 'डाइनामो' कैसे बना और कैसे खत्म हो गया, ये पता लगाना है? क्रस्ट में क्या-क्या तत्व हैं, पानी है या नहीं, अगर है तो कहां है? रक्षित के पिता दिनेश चंद्र जोशी कृषि विभाग से सहायक निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए, जबकि मां सरिता जोशी गृहणी हैं. रक्षित की बहिन न्यूयॉर्क में आर्थिक सलाहकार हैं.