वैज्ञानिकों की टीम ने किया स्पष्ट: पूरा पहाड़ खतरे की जद में पहुंचा, कभी भी दरक सकता है पहाड़
हल्द्वानी न्यूज़: हैड़ाखान रोड अब जल्द सुचारू नहीं होगा। हालांकि प्रशासन पिछले कई दिनों से इस सड़क को खोलने की जुगत में था, लेकिन अब वैज्ञानिकों की टीम ने स्पष्ट कर दिया है कि पूरा का पूरा पहाड़ खतरे की जद में है और अगर सड़क खोलने का काम न रोका गया तो पूरा पहाड़ कभी भी दरक सकता है। काठगोदाम थाने से हैड़ाखान जाने वाली सड़क पिछले एक सप्ताह से बंद है। यहां बरसात के दिनों में अकसर मलबा आ जाता है और हाल ही में पूरी की पूरी सड़क ही साफ हो गई थी। जिसके बाद पहाड़ काट कर दोबारा कच्ची सड़क का निर्माण किया गया, लेकिन ये भी ज्यादा समय तक नहीं टिकी। इस बार सड़क तो नहीं गिरी, लेकिन पहाड़ का मलबा भरभरा कर सड़क पर आ गया। जिसके दो दिन बाद प्रशासन ने सड़क से मलबा हटाने का काम शुरू किया। साथ ही लगातार हो रहे भू-स्खलन को देखते हुए भू-गर्भीय सर्वे की जरूरत को भी महसूस किया गया।
इसके लिए शुक्रवार को वैज्ञानिकों की एक टीम मौके पर पहुंची और कई घंटों चले सर्वे के बाद यह तय किया गया कि सड़क खोलने का कोई लाभ नहीं होगा। बल्कि ये हो सकता है कि सड़क खोलने के चक्कर में पूरा का पूरा पहाड़ दरक सकता है। टीम में मौजूद पीडब्ल्यूडी अधिशासी अभियंता दीपक गुप्ता ने बताया कि सर्वे की एक रिपोर्ट तैयार की गई और इसका आंकलन किया जाएगा। जिसके बाद यह तय किया जाएगा कि रोड को कैसे काटना है या फिर सड़क को कहीं और से ले जाया जाए। फिलहाल, सर्वे के लिए पहुंची टीम ने रोड न खोलने की चेतावनी दी है और कहा है कि पहाड़ बेहद संवेदनशील स्थिति में है।
भूकंप के बाद दरका था पहाड़: हाल में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इस बात की पुष्टि तो नहीं है, लेकिन चर्चा है कि भूकंप आने के बाद ही हैड़ाखान रोड के इस पहाड़ से मलबा गिरकर सड़क पर आ गया था और पहाड़ में दरार पड़ गई थी। भूकंप से पहाड़ दरकने की चर्चा को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता। हालांकि सच वैज्ञानिकों की सर्वे रिपोर्ट के आंकलन के बाद ही सामने आएगा।
जंगल और नदी का किनारा है पुराना रास्ता: हैड़ाखान रोड और यहां के गांवों में बसे पुराने लोगों की मानें तो एक जमाने में वह लोग बिना सड़क के ही रहते थे, हालांकि सड़क बन जाने से तमाम सारी सहूलियतें हो गई और तमाम संसाधन आसानी से उपलब्ध हो गए। उन्होंने बताया कि जब सड़क नहीं थी तब लोग जंगल के कच्चे रास्तों और नदी के किनारों से होते हुए हल्द्वानी पहुंचते थे और इस मार्ग से कम समय में हल्द्वानी पहुंच जाते थे।