देहरादून न्यूज़: राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन) कर चुके उम्मीदवारों को 2648 पदों पर चल रही शिक्षक भर्ती में शामिल करने या न करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उत्तराखंड के पूर्व महाधिवक्ता उमाकांत उनियाल ने प्रकरण में बीएड उम्मीदवारों की ओर से एसएलपी दाखिल कर दी है। प्रदेश में शिक्षक भर्ती के लिए एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों को पहले शिक्षक भर्ती में शामिल करने और बाद में सरकार के अपने ही निर्णय को पलटे जाने के खिलाफ अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए थे। लगभग एक महीने पहले हाईकोर्ट इन अभ्यर्थियों को शिक्षक भर्ती में शामिल करने का फैसला सुना चुका है। हाईकोर्ट के इस फैसले पर अमल किया जाए या फिर इसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएं, सरकार इस पर विचार कर रही है। प्रकरण में विधि विभाग से राय ली जा रही है, लेकिन इससे पहले की सरकार इस मसले पर कोई कदम उठाती, मंगलवार को बीएड टीईटी अभ्यर्थी हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता उमाकांत उनियाल की ओर से इस मामले में एसएलपी दाखिल की गई है। उनियाल ने कहा कि एनआईओएस से डीएलएड मामले में एनसीटीई की ओर से कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई थी। इनके मामले में केवल सर्कुलर जारी किया गया था। अपात्र होने की वजह से उत्तर प्रदेश में इन लोगों को भर्ती से बाहर कर दिया गया था। जो राजनीतिक मुद्दा बन गया था। उन्होंने कहा कि यह निजी स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षक थे। जिन्हें 31 मार्च 2019 तक एक बार 18 महीने के सेवारत प्रशिक्षण का अवसर दिया गया था। पूर्व महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार जब एक बार शिक्षक भर्ती शुरू कर चुकी है तो बीच में भर्ती के लिए शैक्षिक योग्यता को बदला नहीं जा सकता।
प्रदेश के राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए शिक्षा विभाग ने वर्ष 2020-21 में 2648 पदों के लिए आवेदन मांगे थे। शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों से डीएलएड और बीएड अभ्यर्थियों के साथ ही एनआईओएस से डीएलएड करने वालों ने भी इसके लिए आवेदन किए थे। सरकार ने एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों को पहले शिक्षक भर्ती में शामिल किया और बाद में इन्हें शिक्षक भर्ती में शामिल न करने का निर्णय लिया गया। इसके खिलाफ अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने शासन के इन्हें भर्ती में शामिल न करने के 10 फरवरी के आदेश को रद्द कर दिया था।