देवभूमि का एक ऐसा मंदिर जहा सिर्फ रक्षाबंधन पर ही खुलते हैं मंदिर के कपाट

Update: 2022-08-10 12:43 GMT

स्पेशल न्यूज़ चमोली: भारत के प्राचीन इतिहास में कई ऐसे रोचक बातें छिपी हुई हैं, जिनके बारे में आपको शायद ही पता होगा। एक ऐसे ही रोचक तथ्यों से घिरा हुआ है उत्तराखंड का एक मंदिर, जिसको लेकर कहा जाता है कि यहां के कपाट केवल और केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं। चलिए आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हैं।


इस मंदिर को बंशीनारायण/वंशीनारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी पर मौजूद है। मंदिर तक जाने का अनुभव बेहद ही अलग है, क्योंकि यहां तक कई लोग ट्रैकिंग करते हुए पहुंचते हैं। ये मंदिर भी इसलिए खास माना जाता है, क्योंकि इसका अपना अलग ही महत्व है, साथ ही पर्यटक भी इस मंदिर की खासियत की वजह से यहां घूमने के लिए आते हैं। मंदिर की लोकेशन उर्गम घाटी को यहां बुग्याल भी कहते हैं और ये घनी वादियों से घिरी हुई है। बंशी नारायण के मंदिर की बनावट को देखकर लगता है कि वह मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ छठवीं से दसवीं इसवीं के मध्य निर्मित किया मंदिर है। कत्यूरी शैली के मंदिर उच्चे ताप वाले मंदिर हैं। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय के साथ खुलता है और सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट अगले 365 दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार खुलता है वैसे ही महिलाएं भगवान को राखी बंधना शुरू कर देती हैं और बड़े धूम-धाम के साथ पूजा भी करती हैं।

रीति रिवाजों के अनुसार, यहां की महिलाएं और लड़कियां भाइयों को राखी बांधने से पहले भगवान की पूजा करती हैं। ये भी कहा जाता है कि यहां श्री कृष्ण और भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कहानी है, विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यहीं प्रकट हुए थे। इसके बाद से ही यहां देव ऋषि नारद भगवान नारायण की पूजा की जाती है। इसी वजह से यहां पर लोगों को सिर्फ एक दिन ही पूजा करने का अधिकार मिला हुआ है। मान्यता है कि राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब बलि का अहंकार नष्ट हुआ तब उन्होंने नारायण से प्रार्थना की कि आप मेरे सामने ही रहें। इसके बाद विष्णु जी बलि का द्वारपाल बन गए। जब बहुत दिनों तक विष्णु जी, मां लक्ष्मी के पास नहीं पहुंचे तो लक्ष्मी जी पाताल लोग पहुंच गईं और बलि की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें विष्णु जी को मांग और लौटकर अपने लोक में पहुंच गए। तब से इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा। कहा जाता है कि वंशी नारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे छठी सदी में बनाया गया था। एक अन्य लोक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान नारद जी ने 364 दिन भगवान विष्णु की पूजा करते और एक दिन के लिए चले जाते थे ताकि लोग पूजा कर सकें। स्थानीय लोग श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी करते हैं। रक्षाबंधन के दिन गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है।


मंदिर में श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है और इस मंदिर की अंदर से ऊंचाई महज 10 फुट है। यहां के पुजारी राजपूत हैं, जो हर साल रक्षाबंधन पर ही खास पूजा का आयोजन करते हैं। मंदिर के नजदीक एक भालू गुफा भी है, जहां भक्त प्रसाद बनाते हैं। कहते हैं कि इस दिन यहां हर घर से मक्खन आता है और इसे प्रसाद में मिलाकर भगवान को चढ़ाया जाता है। मंदिर में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों की मूर्तियां मौजूद हैं। साथ ही, भगवान गणेश और वन देवी की मूर्तियां इस मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं। उत्तराखंड का एकमात्र मंदिर है जो साल में एक बार रक्षा बंधन के दिन खुलता है, अपने में ही एक बेहद खास चीज बनाता है।

इस मंदिर तक कैसे पहुंचे?

उत्तराखंड के चमोली जिले में उर्गम घाटी में स्थित बंसी नारायण मंदिर तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है। पहले आपको जोशीमठ तक जाना होगा जो देहरादून से लगभग 293 किमी की दूरी पर है। जोशीमठ से, हेलंग की ओर, जो 22 किमी दूर है, और अंत में देवग्राम की ओर, हेलंग से 15 किमी दूर है। बंसी नारायण मंदिर का ट्रेक देवग्राम से शुरू होता है और लगभग 12 से 15 किमी लंबा होता है।

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