अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने मिशन कर्मयोगी को देश के समक्ष रखा था। उन्होंने 'कर्मसु कौशलम' की बात कही थी। इसे गीता के दूसरे अध्याय के 50 वें श्लोक से लिया गया है। इसका अर्थ है कर्मों में कुशलता। कर्मयोगी पहल के लिए देश भर से प्रशिक्षक और संसाधन जुटाकर राज्य की कार्य संस्कृति का कायाकल्प करने की खातिर ऐसा करना आवश्यक है।
अपने स्तंभ की पिछली किस्त मैंने इस बिंदु पर समाप्त की थी कि उत्तराखंड में मिशन कर्मयोगी को उसकी आत्मा के मुताबिक जस का तस लागू किया जाना चाहिए। मेरे लिए यह बड़े संतोष की बात है कि राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि इस योजना के क्रियान्वयन का जिम्मा डा. आरएस टोलिया नैनीताल एटीआई के सौंपा जाए। वास्तव में सरकार को इस काम में मसूरी स्थित नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की मदद भी लेनी चाहिए।
कर्मयोगी पहल के लिए देश भर से प्रशिक्षक और संसाधन जुटाकर राज्य की कार्य संस्कृति का कायाकल्प करने की खातिर ऐसा करना आवश्यक है। यही नहीं, इंडस्ट्री, निजी विश्वविद्यालयों और नागरिक संगठनों से अपील की जानी चाहिए वे अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को उत्तराखंड के मिशन कर्मयोगी के लिए प्रस्तुत करें ताकि एक दिन ऐसा आए कि राज्य का यह मिशन दूसरे राज्यों के लिए भी मिसाल बनकर उभरे और साथ ही उसका प्रसार जिला पंचायतों और नगर निगमों तक किया जा सके।
क्या है मिशन कर्मयोगी
अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने मिशन कर्मयोगी को देश के समक्ष रखा था। उन्होंने 'कर्मसु कौशलम' की बात कही थी। इसे गीता के दूसरे अध्याय के 50 वें श्लोक से लिया गया है। इसका अर्थ है कर्मों में कुशलता। मिशन कर्मयोगी के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा यह थी कि देश के किसी भी गांव के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक से लेकर देश के कैबिनेट सचिव तक हर कोई अपने हाथ में आए कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से करे।
इस मिशन का पहला बारीक अर्थ यह है कि कर्मचारियों को नियमों से आगे बढ़कर भूमिकाओं तक जाना होगा। यानी रूल्स टू रोल्स। उन्हें समय-समय पर खुद के कार्य का मूल्यांकन करना होगा, फीडबैक देना होगा कि क्या उनके नियम कायदे विभाग के उद्देश्यों को पाने की दिशा में ठीक हैं, क्या उन लक्ष्यों को दूसरे रास्ते से बेहतर तरीके से प्राप्त किया जा सकता है और कहीं टेक्नोलॉजी ने वक्त के साथ उन लक्ष्यों को अप्रासंगिक तो नहीं बना दिया है।
यातायात के नियम सिर्फ वाहन चालकों के लिए नहीं
मिसाल के तौर पर अगर परिवहन विभाग का मकसद हादसों में कमी लाना और सुरक्षित ड्राइविंग को बढ़ावा देना है तो सोचना होगा कि इसके लिए क्या कोई बेहतर तरीका हो सकता है। इसके लिए कायदे से सबसे पहले ड्राइविंग टेस्ट की व्यवस्था उन लोगों के लिए बहुत सुविधाजनक होनी चाहिए, जो पहली बार वाहन खरीदते हैं। परिवहन विभाग सुविधादाता विभाग है, ऐसे में ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए कॉलेजों, पॉलिटेक्निक और औद्योगिक संस्थानों में शिविर भी लगाने चाहिए ताकि युवा यातायात नियमों के प्रति अधिक जागरूक हो सकें। यातायात के नियम सिर्फ वाहन चालकों के लिए नहीं, सड़क पर पैदल चलने वालों को भी नियम पता होने चाहिए। इसके लिए उचित तरीके जनजागरण किया जाना चाहिए।
नई तकनीक को समाहित करने में हिचकेंगे नहीं
मिशन कर्मयोगी के लागू होने पर उम्मीद है कि सरकार के सभी मंत्रालय, विभागों और संगठन मौजूदा नियमों के इतर नवीन सुझाव और नई तकनीक को समाहित करने में हिचकेंगे नहीं और सुधार की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा करेंगे। संस्थान में हर व्यक्ति के सामने उसकी भूमिका बिलकुल स्पष्ट होनी चाहिए। किसकी क्या जिम्मेवारी है यह कतई साफ होना चाहिए। मंत्रालय या विभाग को किसी लक्ष्य के लिए स्पेशल परपज व्हीकल चाहिए या निदेशालय या निगम चाहिए, इस पर गहराई से विमर्श होना चाहिए। याद रहे भारत सरकार के पास नीति आयोग है।
विभागों के पास बजटीय मदों और अपने सेक्टर की नीतियों पर सीधे नियंत्रण है। इसलिए राज्य सरकारों को कार्यशैली में बदलाव लाना होगा। विभागों को तो अपने सेक्टर के नॉलेज इंस्टीट्यूशन्स यानी ज्ञान-अनुसंधान संस्थानों से संपर्क में रहना चाहिए ताकि वे वैश्विक स्तर की श्रेष्ठ रीति-नीति को समझ सकें। मसलन उत्तराखंड के आवास विभाग को प्रधानमंत्री आवास योजना की अग्रणी परियोजनाओं को समझना चाहिए और सीखना चाहिए कि राज्य के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले शहरों के लिए राजकोट, लखनऊ, इंदौर, , अगरतला, चेन्रै या रांची की कहानी में कौन से सबक छिपे हैं।
सभी कर्मचारियों को भूमिकाओं, क्रियाकलापों, योग्यताओं के फ्रेमवर्क (एफआरएसी) के दायरे मे लाना चाहिए। हर कर्मचारी को उसकी भूमिका पता हो, और उसके निर्वहन के लिए उपयुक्त योग्यता हासिल करने की सुविधा हो। यहां तात्पर्य व्यवहारगत कुशलता और व्यवहारिक क्षमताओं से भी है। इसके साथ ही विचार और कर्म की एकता अनिवार्य है। साथ में सकारात्मकता को जोड़ लीजिए। यही सब गुण मिलकर मिशन कर्मयोगी की आत्मा को परिभाषित करते हैं।
एक योगी तरह कर्मयोगी को भी कर्म के रास्ते पर एकनिष्ठ होकर चलना होता है। जो काम हाथ में है उसे पूरे समर्पण भाव से करना। एक बार कर्मयोगी मिशन की आत्मा तंत्र में बस गई तो फिर उसके फायदे आप गिनते रह जाएंगे - ईज आफ लिविंग, ईज ऑफ बिजनेस, जनोन्मुख शासन, पारदर्शी शासन.....
उत्तराखंड देश के सबसे युवा कर्मचारियों वाला राज्य है। वे इस प्रदेश को देश का नंबर वन राज्य बनाने की काबिलियत रखते हैं। मिशन कर्मयोगी की आत्मा और राज्य की युवा शक्ति का शरीर - दोनों का योग अद्भुत होगा। अगर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी इस योग का सदुपयोग कर पाएं तो उत्तराखंड कमाल कर सकता है।