सवाल- जिद के आगे क्यों झुका अस्पताल, टूटती रहीं बेटी की सांसें और पत्थर दिल बनी रही मां

Update: 2022-08-06 12:44 GMT

न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला

जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में 23 जुलाई की रात नाबालिग व उसके नवजात शिशु की मौत के मामले में मुख्य चिकित्साधिकारी ने भी अलग से जांच कराई है। इसमें सामने आया है कि नाबालिग की प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो गई थीं, जिस कारण उसे अधिक रक्तस्राव होने लगा था।

जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग प्रशासन ने जांच रिपोर्ट में गर्भवती नाबालिग की मौत के लिए उसकी मां की भूमिका को संदिग्ध बताया है। रिपोर्ट के अनुसार, बेटी की सांसें टूटी रही थीं, लेकिन मां, बेटी को दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए तैयार नहीं हुई। डॉक्टर बार-बार मां को बेटी की हालत के बारे में आगाह करते रहे लेकिन वह जिला अस्पताल में ही इलाज कराने की बात पर अड़ी रही। हालांकि, इस रिपोर्ट में अस्पताल की लापरवाही पर पूरी तरह पर्दा डाल दिया गया। अस्पताल प्रशासन लड़की की मां की जिद के आगे क्यों झुका? इस सवाल का जवाब रिपोर्ट में नहीं है।

अस्पताल की तीन सदस्यीय कमेटी ने मामले की जांच की है। रिपोर्ट के अनुसार, लड़की की मां ने अस्पताल में पुरुष डॉक्टर तो दूर महिला डॉक्टर को भी बेटी को छूने नहीं दिया। यहां तक कि पेशाब की जांच भी नहीं कराने दी। जब चिकित्सकों ने हिमोग्लोबिन कम होने और खून अस्पताल में नहीं होने पर सीधे हायर सेंटर रेफर करने के लिए कहा तो वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी। अस्पताल प्रबंधन ने रेफर के कागजात तैयार कर दो बार एंबुलेंस भी बुलाई लेकिन महिला बेटी को ले जाने के लिए तैयार नहीं हुई। परिजन श्रीनगर से दो यूनिट खून भी लेकर आ गए। उनका कहना था कि बेटी का इलाज रुद्रप्रयाग में ही किया जाए।

मां ने अपनी ही बेटी के उपचार में नहीं किया सहयोग

शाम को जिला चिकित्सालय प्रबंधन ने नाबालिग को मजबूरन जनरल वार्ड में भर्ती किया लेकिन मां ने चिकित्सकों का कोई सहयोग नहीं किया। जांच कमेटी में शामिल एक चिकित्सक ने बताया कि मां ने अपनी ही बेटी के उपचार में कोई सहयोग नहीं किया। पूरे प्रकरण में कई बातें संदिग्ध नजर आई हैं। दूसरी तरफ पुलिस सीसीटीवी फुटेज में घटना के समय अस्पताल में नजर आए संदिग्धों की तलाश में जुटी है। जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में 23 जुलाई की रात नाबालिग व उसके नवजात शिशु की मौत के मामले में मुख्य चिकित्साधिकारी ने भी अलग से जांच कराई है। इसमें सामने आया है कि नाबालिग की प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो गई थी, जिस कारण उसे अधिक रक्तस्राव होने लगा था। इस परिस्थिति में जिला चिकित्सालय प्रबंधन को पुलिस अभिरक्षा में नाबालिग को हायर सेंटर रेफर करना चाहिए था। लेकिन परिजनों के लिखित पत्र के आगे गैरजिम्मेदाराना तरीके से अस्पताल प्रबंधन मजबूर हो गया।

इंटरमिडिएट की छात्रा थी नाबालिग

नाबालिग लड़की इंटरमिडिएट की छात्रा थी। बताया जा रहा है कि जुलाई माह में वह सिर्फ दो दिन ही स्कूल गई थी। अक्सर उसके अनुपस्थित रहने पर स्कूल प्रबंधन ने जानकारी जुटाई। परिजनों ने उसकी तबीयत खराब होने की बात कही थी।

जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग में नाबालिग जच्चा-बच्चा की मौत और उससे जुड़े प्रकरण की जांच रिपोर्ट अभी तक मुझे नहीं मिली है। मुझे बताया गया है कि नाबालिग लड़की को बेहतर इलाज दिया गया। जबकि नाबालिग और उसकी माता की ओर से कोई सहयोग नहीं किया गया। साथ ही गर्भवती होने की जानकारी भी छुपाई गई। इस मामले में रिपोर्ट के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

नाबालिग लड़की को रेफर कर दिया गया था। दो बार एंबुलेंस भी बुलाई गई लेकिन उसकी मां ने लिखित पत्र देकर कहा कि बेटी का इलाज यहीं किया जाए। इन हालात में उसे किस के सहारे छोड़ा जा सकता था। जो बेहतर इलाज हो सकता था वह देने का प्रयास किया गया।


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