देहरादून: पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) से टेंडर लेने वाली कंपनियां पहले से ही विवादित थीं। इन्हें टेंडर देने में अधिकारियों ने लीपापोती की और करोड़ों का काम इन विवादित कंपनियों को दे डाला। पुलिस और विभाग इस मामले में अधिकारियों की मिलीभगत की भी जांच कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि अब एक संगठन ने जब आरटीआई में जवाब मांगा तो खुद को बचाने के लिए यह मुदकमा दर्ज कराया गया है।
18 मई 2016 को आमंत्रित की गईं थी निविदा: पिटकुल की ओर से 18 मई 2016 को निविदा आमंत्रित की गई थी। इसमें मिलीभगत करके ठेकेदार अवधेश कुमार मार्फत मैसर्स इशान एंटरप्राइजेज -7 ए एजेंसी बोस रोड, कोलकाता बंगाल, राजेंद्र मिमानी स्वामी मैसर्स इशान एंटरप्राइजेज कुचिल सरकार लेन हावडा, रवि शंकर पांडय मार्फत सीटीआर मैन्युफेक्चरिंग कंपनी इंडस्ट्रीज लिमिटेड नागर रोड पुणे, गिरीश चैतन्य आर प्रबंध निदेशक मैसर्स वैन्सन इलेक्ट्रिक प्राइवेट लिमिटेड पिनिया इंडस्ट्रियल एरिया, बंगलूरु, सुमार ब्रह्म भट्ट मार्फत मैसर्स एचएससी इन्फ्रा प्रोजेक्टस,सिगमा बन कारपोरेट-कारपोरेट हाउस नंबर-6 सिंद्धू भवन रोड बोडकदेव, अहमदाबाद, नरेंद्र ए कोडे मार्फत मैसर्स सीगनेट प्रोडक्टस प्राइवेट लिमिटेड, पीटी गेरा सेंटर, तीसरा तला घुले पाटिल रोड, बुंद गार्डन, पूणे महाराष्ट्र को ही शामिल किया गया।
उच्च न्यायालय के आदेश पर गठित की गई कमेटी: शर्तों के अनुसार, कार्य 2018 में पूरा किया जाना था लेकिन ठेकेदारों ने समय पर काम पूरा नहीं किया। पिटकुल ने ठेकेदारों पर जुर्माना लगाने के बाद पहले 26 जुलाई 2018 और इसके बाद दिसंबर 2019 को बिना पेनल्टी समय विस्तार किया। इसके बाद मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा और उच्च न्यायालय के आदेशानुसार कमेटी का गठन किया गया, जिसमें पिटकुल के उच्च अधिकारियों को शामिल किया गया।
कमेटी ने लिया गया अहम फैसला; कमेटी ने निर्णय लिया कि विभाग की ओर से तय धनराशि से अधिक कंपनियों को नहीं दी जानी चाहिए। यह रिपोर्ट कुछ अधिकारियों ने पास कर दी, लेकिन एक अधिकारी ने फर्म की पैरवी की और निर्णय कंपनी के पक्ष में करने को अड़ा रहा। बताया जा रहा है कि कंंपनी की ओर से इस अधिकारी के बेटे के खाते में भी कुछ धनराशि डाली गई है।