कपकोट\कर्मी: उत्तराखंड प्रदेश का भूभाग मैदानी क्षेत्रों से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक फैला हुआ है। इस प्रदेश में तमाम तरह की जैव विविधता पाई जाती है। उत्तराखंड प्रदेश में औषधीय पौधे बहुतायत की मात्रा में पाए जाते हैं। जिनसे यहां स्वरोजगार के तमाम अवसर पैदा हो सकते हैं। इसलिए हमें इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए अधिक से अधिक प्रयास करने होंगे। गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान में जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र द्वारा उत्तराखंड में औषधीय पादपों की विविधता और रोजगार विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए संस्थान के वैज्ञानिक डा. आशीष पांडे ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि संस्थान का जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र वर्ष 1993 से संरक्षण शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है। उन्होंने बताया कि इस क्रम को आगे बढ़ाया जा सके। इसके लिए इस बार संस्थान द्वारा लोहाघाट और बाराकोट विकास खंड को इस कार्य के लिए चयनित किया है। ताकि इन क्षेत्रों के स्कूली बच्चों और शिक्षकों को संरक्षण शिक्षा अभियान से जोड़ा जा सके।
राजकीय इंटर कालेज बिरौड़ा के शिक्षक डा. नवीन सिराड़ी ने अपने संबोधन में जैव विविधता और इसकी महत्ता पर विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के मैदानी भूभाग में जहां ब्राह्मïी व गिलोय जैसे औषधीय पादप पाए जाते हैं। वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में घिंघारू, थुनेर, कीड़ा जड़ी जैसे औषधीय पादप विद्यमान हैं। जिनका उपयोग हर्बल, कास्मेटिक व फार्मास्युटिकल उद्योगों में काफी अधिक मात्रा में किया जाता है। उन्होंने बताया कि यहां पाई जाने वाली वनस्पतियों में औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए इनके सतत उपयोग को बढ़ाने की ओर ध्यान देने की जरूरत है।
सिराड़ी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रदेश को हर्बल स्टेट बनाने के लिए गोपेश्वर में जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान की स्थापना की है। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. सतीश आर्य ने भी अपने संबोधन में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पादपों के संरक्षण के लिए जागरूक करने की बात पर जोर दिया। वेबिनार में डॉ. के चंद्रशेखर, भानु प्रताप, आईडी भट्ट समेत लोहाघाट और बाराकोट के तीस से अधिक स्कूली बच्चों और शिक्षकों ने प्रतिभाग किया।