मनोज रावत पर लगा विधायक निधि खर्च न कर पाने का आरोप, जनप्रतिनिधियों की बेरुखी से लोगों में आक्रोश, पढ़िए पूरी खबर...
जनप्रतिनिधियों की बेरुखी से लोगों में आक्रोश
रुद्रप्रयाग: ग्याहरवें ज्योतिर्लिंग से प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ के नाम से केदारनाथ विधानसभा का नाम रखा गया है. यहां की भौगोलिक स्थिति पर नजर डालें तो क्षेत्र के लोग भगवान केदार की यात्रा पर निर्भर हैं, मगर दो साल से कोरोना महामारी की वजह से यहां के लोगों का रोजगार काफी ज्यादा प्रभावित हुआ है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में केदारनाथ विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत ने निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत को पराजित किया था. बता दें कि उत्तराखंड की यह महत्वपूर्ण विधानसभा सीट रुद्रप्रयाग जिले के अंर्तगत आती है. यहां पर 2017 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. उस दौरान कुल 24.74 फीसदी वोट पड़े थे जिसमें कांग्रेस के मनोज रावत ने निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप सिंह रावत को 869 वोटों से हरा दिया था. वहीं निर्दलीय कुलदीप रावत के दूसरे नम्बर थे, जबकि भाजपा को चौथे नंबर पर संतोष करना पड़ा था.
केदारनाथ विधानसभा के 60 प्रतिशत लोग छह माह तक केदार यात्रा पर निर्भर रहकर सालभर का गुजारा करते हैं. ऐसे में दो साल तक कोरोना महामारी ने लोगों की आर्थिक व्यवस्था पर खासा असर डाला है. हालांकि इस दौरान यहां के लोगों ने अपने जनप्रतिनिधियों को ना केवल याद किया बल्कि अपने जनप्रतिनिधियों को भी ढूंढा. वे रोजगार को लेकर भटकते रहे लेकिन उन्हें उसका लाभ नहीं मिला. इसको लेकर लोगों में आक्रोश है.
हालांकि केदारनाथ के पुनर्निर्माण को लेकर केन्द्र सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कोरोना की वजह से रोजगार नहीं मिलने की लोगों में कसक है. इसके अलावा यहां के लोग वर्तमान विधायक के व्यवहार से दुखी है. उनका कहना है कि विधायक मनोज रावत ने इन पांच सालों में विधायक निधि खर्च करने में कंजूसी दिखाई है. करोड़ों रुपये की विधायक निधि खर्च नहीं हुई है. वहीं क्षेत्र में सबसे ज्यादा दिक्कतें स्वास्थ्य बनी हुई है. स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सकों के साथ ही उपकरण नहीं होने से लोगों को जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग या फिर श्रीनगर जाना पड़ता है.
इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई कार्य नहीं हुआ है. वर्षों से तल्लानागपुर क्षेत्र में महाविद्यालय निर्माण की मांग किए जाने के बाद भी विधायक के द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया. इसके अलावा क्षेत्र में तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों के विकास को लेकर भी कोई कार्य नहीं हुआ है. अगर विधायक इन स्थलों का विकास करते तो ना केवल रोजगार की संभावनाएं पैदा होती बल्कि लोगों को अपने क्षेत्र में ही रोजगार के अवसर प्राप्त होते.अभी तक के चुनावों में केदारनाथ विधानसभा में महिला जनप्रतिनिधि का दबदबा रहा है. 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में यहां भाजपा से आशा नौटियाल विधायक रही. वहीं 2012 में कांग्रेस ने भी महिला प्रत्याशी पर दांव खेला और शैलारानी रावत को अपना उम्मीदवार बनाया. शैलारानी रावत ने 2012 के चुनाव में भाजपा की आशा नौटियाल को पराजित किया. 2017 विधानसभा चुनाव से पूर्व ही शैलारानी रावत ने कांग्रेस से बगावत कर दी और भाजपा में शामिल हो गईं, फिर भाजपा ने शैलारानी रावत तो कांग्रेस ने नए चेहरे मनोज रावत को टिकट दिया. 2017 के चुनाव में कांग्रेस के मनोज रावत को जीत हासिल हुई, जबकि भाजपा चौथे स्थान पर खिसक गई
महिला प्रत्याशियों का रहा है दबदबा: वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत की जीत चौंकाने वाली थी. केदारनाथ की जनता ने न केवल बागियों को, बल्कि धन-बल को भी नकार दिया था. एक ओर जहां पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर दिखाई दी. ऐसे में मनोज की जीत को कांग्रेसी केदारनाथ में सरकार द्वारा किए गये कार्यों पर जनता की मुहर बता गए. यहां 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा चौथे नंबर पर आई. वहीं कांग्रेस ने जहां जीत हासिल की तो दूसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत रहे. वहीं तीसरे नंबर पर भाजपा से दो बार की विधायक रही और 2017 में टिकट न मिलने पर बगावत करके चुनाव लड़ी आशा नौटियाल रही. केदारनाथ विधानसभा में पंच केदार में तीन केदार स्थित हैं: केदारनाथ विधानसभा के अंतर्गत पंच केदारों में से तीन केदार स्थित हैं. सबसे पहले केदारनाथ फिर द्वितीय केदार मदमहेश्वर और तृतीय केदार तुंगनाथ. इसके अलावा मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चोपता दुगलबिट्टा भी केदारनाथ विधानसभा में आता है. कार्तिक स्वामी, शिव पार्वती विवाह स्थल त्रियुगीनारायण, सिद्धपीठ कालीमठ, देवरियाताल-सारी आदि तीर्थ एवं पर्यटक स्थल भी केदारनाथ विधानसभा में मौजूद हैं. केदारनाथ विधानसभा की आधी से अधिक आबादी का जरिया केदारनाथ यात्रा और पर्यटन व्यवसाय से जुड़ा है. केदारनाथ विधानसभा में एक लाख के करीब मतदाता हैं. यहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत अधिक है. जबकि जातिगत देखें तो ठाकुर वोट 48 से 50 प्रतिशत हैं तो ब्राह्मण वोट 30 प्रतिशत हैं. बीस प्रतिशत वोट यहां एससी, एसटी व ओबीसी की है.
सड़क, पानी और रोजगार सहित कई हैं समस्याएं: क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, पेयजल, संचार, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर ग्रामीण सड़कों पर उतरते रहते हैं. रोजगार का एकमात्र साधन केदारनाथ, तुंगनाथ, मदमहेश्वर धाम की यात्रा पर निर्भर रहता है. वहीं कोरोना महामारी के कारण दो साल से लोग परेशान हैं. हालांकि अब धीरे-धीरे दिक्कतें कम होती जा रही हैं. तल्लानागपुर के चोपता में पाॅलीटेक्निक का कार्य बंद पड़ा है तो क्षेत्र में स्वास्थ्य की काफी समस्या है. इसके अलावा चोपता में महाविद्यालय की घोषणा महज घोषणा बनकर ही रह गई.
वर्तमान विधायक मनोज रावत का कहना है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में केदारनाथ क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार को लेकर कार्य किया है. विधायक निधि से वर्चुअल क्लास की शुरूआत केदारनाथ विधानसभा से हुई, जो राज्य सरकार के लिए एक नया विकल्प बना. इसके अलावा स्कूलों में अध्यापकों की कमी को दूर किया गया तो जीर्ण-शीर्ण भवनों का निर्माण करवाया गया. शिक्षा के साथ ही खेल पर भी ध्यान दिया गया. विधायक निधि से 12 खेल मैदान बनकर तैयार हो गए हैं, जिससे युवाओं को आगे बढ़ने में सफलता मिल रही है. विधायक ने बताया कि उन्होंने सड़क से लेकर पुलों का निर्माण करवाया. इनके निर्माण से ग्रामीणों को काफी लाभ मिल रहा है. ग्रामीण इलाकों में पुस्तकालय खोले गए हैं. उन्होंने बताया कि दो साल से कोविड काल में काफी दिक्कतें हुई हैं और वर्तमान सरकार ने विधायक निधि खर्च करने में भी अड़चने पैदा की जो भी धनराशि विधायक निधि की खर्च की गई, उसमें कोई गड़बड़ नहीं की गई है.
अपनी निधि ही खर्च नहीं कर पाए विधायक: पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप रावत का कहना है कि केदारनाथ विधानसभा के विकास को लेकर विधायक ने कुछ भी कार्य नहीं किया है, जिसका नतीजा यह कि जनता आज विकल्प ढूंढ रही है. स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल सहित रोजगार पर कोई कार्य नहीं हुआ है. विधानसभा के स्वास्थ्य केन्द्र रेफर सेंटर बने हुए हैं. चोपता में पाॅलीटेक्निक का भवन निर्माण का कार्य आज तक नहीं हो पाया है. इसके साथ ही तल्लानागपुर क्षेत्र की जनता की महाविद्यालय की मांग भी पूरी नहीं हो पाई है. उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा दिक्कतें जनता को कोरोना काल में हुई हैं. देश-विदेश से घर लौटे लोगों के पास रोजगार का कोई साधन नहीं था, जिस कारण उनके सामने खाने-पीने की समस्या रही. इस दौरान विधायक गायब रहे. विधायक ने जनता के बीच जाना तक उचित नहीं समझा. वे तो अपनी विधायक निधि ही खर्च नहीं कर पाए, क्षेत्र का विकास कहां से करते.