Shri neelkanth mahadev mandir का रोचक इतिहास जानिए

Update: 2023-06-22 07:23 GMT

देवभूमि: उत्तराखंड में कई पावन तीर्थ स्थल हैं। एक ऐसा ही मंदिर ऋषिकेश में स्थित है neelkanth mahadev mandir। मंदिर में हर महीने हजारों की संख्या में लोग महादेव के दर्शन करने आते हैं। श्री नीलकंठ मंदिर का भी अपना एक रोचक इतिहास है।

गंगाजल चढ़ाने और धागा बांधने से होती है हर मनोकामना पूरी

Neelkanth mahadev mandir पर दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में धागा बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु धागा खोलने के लिए वापस आते हैं।

Shri neelkanth mahadev mandir का रोचक इतिहास …

Neelkanth mahadev mandir rishikesh में स्वर्गाश्रम से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बताया जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष कालकूट को पी लिया था। भोलेनाथ ने अपनी शक्ति के प्रभाव से उस विष को अपने कंठ तक ही सीमित रखा और अपने गले से नीचे नहीं जाने दिया इसलिए उन्हें नीलकंठ महादेव कहा जाता है।

60, 000 सालों तक वृक्ष के नीचे ली थी समाधी

विष ग्रहण करने के बाद भोलेनाथ ऐसे स्थान की तलाश में थे जहां उन्हें शीतल हवा मिले। घूमते-घूमते वह मणिकूट पर्वत पर पहुंचे और वहां पर उन्हें वह शीतलता मिली। जिसके बाद मान्यता है कि महादेव 60, 000 सालों तक इसी स्थान पर वृक्ष के नीचे समाधी लगाकर बैठे थे। इसलिए इस स्थान को श्री नीलकंठ महादेव के नाम रूप में जाना जाता है।

सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना होती है पूरी

बताया जाता है जब माता पार्वती के साथ सभी देवी-देवता भगवान शिव की खोज में जुटे तो उन्हें पता चला कि भोलेनाथ मणिकूट पर्वत पर ध्यानमग्न हैं तो माता पार्वती वहां पहुंची और भगवान शिव के पास ही अपना आसन लगाकर बैठ गई। जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधी में लीन थे आज उसी जगह भगवान शिव का मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।

नीलकंठ महादेव मंदिर दर्शन के लिए महादेव के भक्त सावन मास में हर साल लाखों की संख्या में कांवड़ में गंगाजल लेकर भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। मान्यता ये भी हैं कि सावन सोमवार के दिन नीलकंठ के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ऐसे पहुंचे Shri neelkanth mahadev mandir

Rishikesh to neelkanth mandir distance करीब 35 किलोमीटर है। ये पूरा मार्ग पहाड़ी है। ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंचने में डेढ़ से दो घंटे लग जाते हैं। स्वर्गाश्रम से पैदल पहुंचने के लिए सात से आठ किमी की खड़ी चढ़ाई है।

नीलकंठ महादेव के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की राह भविष्य में आसान होने वाली है। अगले तीन साल में मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए रोपवे बनकर तैयार हो जाएगा। रोपवे बन जाने के बाद श्रद्धालु महज 17 मिनट में ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंच सकते हैं।

ऐसे पहुंचे neelkanth mahadev mandir तक

अगर आप हवाई जहाज से आने का सोच रहें हैं तो देहरादून स्थित एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी कुल 18 किलोमीटर है। ऋषिकेश से चार किमी की दूरी पर स्थित रामझूला तक आप आटो से जा सकते हैं। जिसका किराया 10 रुपए है। इसके बाद रामझूला पुल को पार करते हुए स्‍वार्गाश्रम होते हुए पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। आप स्‍वार्गाश्रम से टैक्‍सी से भी मंदिर तक सीधे पहुंच सकते हैं। जिसका किराया 50 रुपए है।

रोपवे के चयनित स्टेशन

रोपवे का पहला स्टेशन आइएसबीटी ऋषिकेश, दूसरा स्टेशन त्रिवेणी घाट, तीसरा स्टेशन नीलकंठ महादेव मंदिर और चौथा स्टेशन पार्वती मंदिर में होगा। यह रोपवे आने वाले 30 वर्षों के लिए पीपीपी मोड पर दिया जाएगा। जानकारी के मुताबिक इसका जिम्मा मेट्रो कारपोरेशन को दिया जाएगा। बता दें यही कारपोरेशन उत्तराखंड में नियो मेट्रो का भी कार्य कर रहा है।

रोपवे का ऋषिकेश से अनुमानित किराया

स्टेशन का नाम वन वे टू वे

आईएसबीटी से त्रिवेणी घाट 35-60

त्रिवेणी घाट से नीलकंठ 230-415

नीलकंठ से पार्वती मंदिर 65-120

तीनों रूट का सफर 330-590

अगर मंदिर आने का सोच रहे हैं तो कपड़ों का भी रखें ध्यान

हाल ही में neelkanth mahadev mandir में श्रद्धालुओं के लिए ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। अब मंदिर में आने वाले श्रद्धालु फटी जींस, हाफ पैंट, मिनी स्कर्ट और नाईट सूट पहनकर आने पर एंट्री नहीं मिलेगी। मंदिर परिसर में सख्त कदम उठाते हुए पोस्टर और साइन बोर्ड लगाकर श्रद्धालुओं को साफ चेतावनी दी गई है। अगर कोई मंदिर में अमर्यादित कपड़े पहनकर आता है तो उसे मंदिर में बाहर से ही दर्शन करने होंगे। जिन श्रद्धालुओं के कपड़े 80 प्रतिशत से कम ढके होंगे उनके लिए ये फैसला लिया गया है।

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