जोशीमठ: जोशीमठ की आपदा पहाड़ों की रानी मसूरी के लिए खतरे की घंटी बन गई है, यहां दिन ब दिन हो रहा भू धंसाव का विकास उन विकास परियोजनाओं को माना जा रहा है जो यहां धड़ल्ले से चल रही हैं। यही हाल मसूरी का भी है, वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक यहां की कैपिसिटी से ज्यादा हो रहे निर्माण और विकास परियोजनाओं से यह पर्यटन क्षेत्र भी आपदा की ओर अग्रसर होता जा रहा है।
मसूरी देश के प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में से एक है। इस कारण यहां भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। यहां कई ऐसे हिस्से हैं जहां लगातार भूस्खलन की बात सामने आ रही है। सबसे ज्यादा बुरे हालात लंढौर और अटाली गांव में हैं। लंढौर चौक से कोहिनूर बिल्डिंग तक 100 मीटर लंबी सड़क धीरे-धीरे धंसती जा रही है। इसके अलावा मसूरी के अन्य पर्यटन स्थल भी लगातार आपदा की चपेट में आते दिख रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इसकी जिम्मेदार निर्माण गतिविधियां और जलभराव इस भू धंसाव और भू स्खलन की मुख्य वजह है।
15% क्षेत्र पर भूस्खलन का खतरा अधिक
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने मसूरी में हो रहे भू धंसाव पर अध्ययन कर अपनी एक रिपोर्ट तैयार की थी। जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक मसूरी और उसके आसपास के तकरीबन 15% क्षेत्र पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा संवेदनशील बाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्प्टी फॉल, खट्टापानी इलाके हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इन इलाकों में दरारों वाली या चूनापत्थर की चट्टानें हैं, जो आपदा का कारण बन सकती हैं।
सतत विकास के नाम पर प्रकृति की कुर्बानी
मसूरी से दिल्ली और अन्य क्षेत्रों के साथ कनेक्टविटी बढ़ी है, सड़क भी अच्छी हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर में भी बढ़ोतरी हुई है। मगर फिर भी सतत विकास के नाम पर प्रकृति की कुर्बानी दी जा रही है, पहाड़ काटे जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ों पर विकास होना चाहिए, लेकिन इनकी धारक क्षमता को देखते हुए। लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (LBSNAA) ने 2001 में इसके नियम बनाए थे। जिनकी लगातार अनदेखी की जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक मसूरी में प्लान की जा रही टनल इस खूबसूरत कस्बे को तबाह कर सकती है, इसके अलावा देहरादून से लेकर मसूरी के बीच बन रहा रोपवे भी बड़ी तबाही की वजह बन सकता है।
कराया जा रहा अध्ययन
लंढौर में हो रहे भूस्लखन को लेकर प्रशासन सतर्क है, मसूरी एसडीएम शैलेंद्र सिंह नेगी के मुताबिक टीम ने वहां पर निरीक्षण किया था। फिलहाल धंसाव मामूली नजर आ रहा है, लेकिन जनहित को देखते हुए इनका अध्ययन कराया जा रहा है, ताकि समय रहते उचित कदम उठाकर इन्हें रोका जा सके। इसके अलावा अटाली गांव में हो रहे भूस्लखन के पीछे रेलवे टनल को कारण माना जा रहा है। ग्रामीणों का दावा है कि रेलवे टनल की वजह से ही सिंगटाली, कौडिल्य और बवानी गांव भी इस वजह से प्रभावित हो रहे हैं।