सियाचिन में 38 साल पहले मारे गए जवान का पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार

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Update: 2022-08-18 12:15 GMT
हल्द्वानी। सियाचिन में 38 साल पहले मारे गए 19 कुमांऊ रेजीमेंट के लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला का बुधवार को यहां उनके गमगीन परिजनों और स्थानीय लोगों की भीड़ की मौजूदगी में पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इससे पहले, हर्बोला के पार्थिव शरीर को यहां के सरस्वती विहार डडरिया स्थित उनके आवास पर लाया गया, जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत अनेक गणमान्य तथा स्थानीय लोगों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। हर्बोला को श्रद्धांजलि देने वालों में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी, रेखा आर्य, राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के अलावा कई प्रशासनिक और सैन्य अधिकारी भी शामिल रहे। उल्लेखनीय है कि 29 मई, 1984 को दुनिया की सबसे ऊंची और बर्फीली युद्धभूमि सियाचिन में भारत-पाकिस्तान के बीच झड़प के दौरान बर्फीले तूफान की चपेट में आकर लापता हो गए थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हर्बोला के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा और उनके परिवार की हरसंभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि देश के लिए बलिदान देने वाले उत्तराखंड के सैनिकों की स्मृति में सैन्यधाम की स्थापना की जा रही है और शहीद चंद्रशेखर की स्मृतियों को भी वहां संजोया जाएगा। घर से हर्बोला के शव को देशभक्ति के नारों और सेना बैंड की धुन के बीच चित्रशीला घाट रानीबाग ले जाया गया, जहां पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। हर्बोला की चिता को उनकी दोनों पुत्रियों ने नम आंखों से मुखाग्नि दी। इस दौरान सेना द्वारा उन्हें गारद सलामी दी गई। लांस नायक हर्बोला का शव हाल में सियाचिन के एक पुराने बंकर से मिला, जिसकी जानकारी कुमाऊ रेजिमेंट, रानीखेत के सैनिक 'ग्रुप केंद्र' की ओर से 14 अगस्त को उनके परिजनो को दी गई थी।
मूल रूप से अल्मोड़ा के द्वाराहाट के रहने वाले हर्बोला के लापता होने के बाद से उनकी पत्नी शांति देवी यहां हल्द्वानी में रहने लगीं। देवी ने बताया कि जनवरी 1984 में उनके पति अंतिम बार घर आए थे और तब उनसे जल्दी आने का वादा करके गए थे। उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि उनके पति ने परिवार के साथ किए वादे पर देश के प्रति अपने फर्ज को प्राथमिकता दी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, हर्बोला 1975 में सेना में भर्ती हुए थे और 1984 में भारत-पाकिस्तान के बीच सियाचिन के लिए टकराव हुआ था। इस झड़प के दौरान भारतीय सेना की कार्रवाई को 'ऑपरेशन मेघदूत' नाम दिया गया और इसके तहत सियाचिन में गश्त के लिए हर्बोला समेत 20 सैनिकों को भेजा गया था। इसी दौरान, सभी सैनिक एक बर्फीले तूफान के बीच ग्लेशियर की चपेट में आ गए। बाद में 15 जवानों के शव मिल गए, लेकिन हर्बोला समेत अन्य के शव नहीं मिल पाए थे।
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