देहरादून : उत्तराखंड में गढ़वाल से कुमाऊं तक जंगल आग से धधक रहे हैं। इससे अब तक 581 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वन संपदा को नुकसान हुआ है, लेकिन वन विभाग सुलग रहे पहाड़ों में आग बुझाने के लिए झाप पर निर्भर हैं। वहीं, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के निर्देश के बाद भी अभी तक सुलगते जंगलों के लिए किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड की खूबसूरत वादियां इन दिनों धुएं के गुबार में लिपटी हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए वन विभाग के पास कोई ठोस प्लान नहीं है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य में परंपरागत तरीके झाप से जंगल की आग से निपटने का प्रयास किया जा रहा है। आग पर काबू के लिए हेलिकाॅप्टर या फिर सेना से मदद लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
आग की बढ़ती घटनाओं से वन्य जीवों की भी जान पर बन आई है। प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु के मुताबिक, जंगल में आग लगाने वाले शरारती तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। वनाग्नि की घटना की सूचना मिलते ही विभाग के अधिकारियों को हर दिन मौके पर भेजकर उनसे रिपोर्ट ली जा रही है।
अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा बताते हैं कि वनाग्नि के मामले में राज्य में अब तक तीन नामजद मुकदमे दर्ज किए गए हैं। कुछ अज्ञात के खिलाफ भी मुकदमे हैं। वन संरक्षक और मुख्य वन संरक्षक से हर दिन वनाग्नि से संबंधित रिपोर्ट मांगी जा रही है। वनाग्नि की घटना पर डीएफओ को मौके पर जाने के निर्देश दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री धामी एक्शन मोड में
वनाग्नि को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक्शन मोड में आ गए हैं। सीएम ने सभी जिलों में डीएफओ को नोडल अधिकारी बनाने के निर्देश दे चुके हैं। सीएम का यह भी कहना है कि अधिकारी यह तय कर लें कि कहीं वनाग्नि की घटना न हो यदि इसके बाद भी घटना होती है तो जिम्मेदारी के साथ इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाए। उधर, मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने वनाग्नि के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के निर्देश दिए हैं।
अब तक वनाग्नि की हो चुकीं 490 घटनाएं
राज्य में बुधवार को वनाग्नि की 13 घटनाएं हुई हैं। इसे मिलाकर अब तक राज्य में 490 घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे 580 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र में वन संपदा को नुकसान हुआ है। वनाग्नि की अब तक की घटनाओं में 204 घटनाएं गढ़वाल और 242 कुमाऊं मंडल के जंगलों की हैं, जबकि 44 घटनाएं वन्य जीव क्षेत्र की हैं।
जंगल की आग बुझाने के लिए झाप का इस्तेमाल किया जा रहा है। झाप से आग बुझाई जा सकती है या फिर बारिश होने पर यह बुझ सकती है। -आरके सुधांशु प्रमुख सचिव वन
यह है झाप या झापा
जंगल में वृक्ष की हरी टहनियों को तोड़कर उसे आग पर मारा जाता है। आसपास से एकत्र की गई इन टहनियों को झाप या झापा कहा जाता है। बताया गया कि विभाग ने लोहे की भी झाप बनाए हैं।