सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से उत्तराखंड के कई विकास प्रोजेक्टों पर संकट मंडराता दिखा
उत्तराखंड में छह नेशनल पार्क और सात सेंचुरी एरिया हैं. इन एरिया में पहले से ही मानवीय गतिविधियां प्रतिबंधित हैं
उत्तराखंड में छह नेशनल पार्क और सात सेंचुरी एरिया हैं. इन एरिया में पहले से ही मानवीय गतिविधियां प्रतिबंधित हैं. बिना परमिशन आप इस एरिया में एंट्री भी नहीं कर सकते लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक नए ऑर्डर से अब पार्क एरिया के बाहर भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. तीन जून को राजस्थान के जमुवा रामगढ़ के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सभी राज्य सरकारों को नेशनल पार्क और सेंचुरी एरिया के एक किलोमीटर की परिधि को ईको सेंसटिव जोन घोषित करने को कहा है. इसके बाद एक किलोमीटर के इस दायरे में कोई भी स्थायी निर्माण के काम नहीं हो सकेंगे. इस आदेश ने राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. 71 फीसदी वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में अधिकांश आबादी इन सेंचुरी एरिया के आसपास बसी है.
उत्तराखंड में छह नेशनल पार्क हैं – कार्बेट नेशनल पार्क, नंदा देवी नेशनल पार्क, वैली ऑफ फ्लाॅवर्स, राजाजी नेशनल पार्क, गंगोत्री नेशनल पार्क और गोविंद नेशनल पार्क.
सात वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हैं – गोविंद वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, केदारनाथ वाइल्डल लाइफ सेंचुरी, अस्कोट वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, सोनानदी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, बिनसर, मसूरी और नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी.
फॉरेस्ट चीफ उत्तराखंड विनोद सिंघल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार और भारत सरकार ने सभी राज्य सरकारों से तीन महीने के भीतर पूरी डिटेल सबमिट करने को कहा है. इसके तहत सभी पार्कों, सेंचुरी के एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाली आबादी, वहां मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर की जानकारी देनी होगी.
अगर यह आदेश लागू हो गया तो?
सिंघल ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए प्रमुख सचिव आरके सुंधाशु की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है. यह कमेटी तमाम पहलुओं की जानकारी जुटाएगी, साथ ही इको सेंसेटिव जोन घोषित होने से क्या क्या दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं? इसका भी जिक्र किया जाएगा.
बहरहाल अगर भारत सरकार ठोस पैरवी करने में सफल नहीं रही और इको सेंसेटिव जोन का ये आदेश लागू होता है तो अकेले राजाजी नेशनल पार्क के कारण हरिद्वार की हर की पैड़ी का क्षेत्र, ऋषिकेश और देहरादून का एक बड़ा रिहायशी एरिया इसकी जद में होगा. जहां इसके बाद कोई भी स्थायी निर्माण के काम नहीं हो सकेगा. इससे लोग चिंतित हैं.
तो क्या पलायन और बढ़ेगा?
'पलायन एक चिंतन' के संयोजक रतन असवाल का कहना है कि राज्य सरकार को भारत सरकार में ठोस तरीके से पैरवी करनी चाहिए. वरना राज्य के विकास, आर्थिकी और सामरिक दृष्टिकोण से ये फैसला उत्तराखंड के लिए खतरनाक होगा. विकास कार्य ठप होने से पहाड़ों से पलायन और तेजी के साथ बढ़ेगा. यही नहीं, पार्क और सेंचुरी एरिया के एक किलोमीटर के दायरे में अगर ईको सेंसटिव जोन लागू हुआ तो इससे राज्य सरकार के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. विकास के कई प्रोजेक्टों पर ताला लटक जाएगा तो दूसरी ओर इसका इम्पलीमेंटेशन कराना ही सरकार के लिए नाको चने चबाने जैसा साबित होगा.