डॉक्टर बढ़े पर पर मौत के केस नहीं घटे, गर्भवतियों की मौत का सिलसिला उत्तराखंड में कब थमेगा

Update: 2022-08-04 17:47 GMT

उत्तराखंड में डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ने के बावजूद गर्भवतियों की मौत के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले पांच सालों में गर्भवतियों की मौत के आंकड़ों में लगातार इजाफा हो रहा है। कभी इलाज न मिलने, कभी एम्बुलेंस न मिलने और कभी प्रसव की दिक्कतों की वजह से आए दिन गर्भवतियां दम तोड़ रही हैं।

एक तरफ देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है दूसरी तरफ पहाड़ की महिलाओं को जीवन बचाने के लिए समय पर इलाज नहीं मिल रहा। राज्य में पिछले पांच सालों में 798 गर्भवतियों की मौत हुई। यह स्थिति तब है जब मातृ व शिशु कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं और देश के ज्यादातर हिस्सों में मातृ मृत्यु दर का ग्राफ नीचे गिर रहा है।

उत्तराखंड में पिछले पांच सालों में डॉक्टरों की संख्या में पचास प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2017 में राज्य में जहां कुल 1500 डॉक्टर तैनात थे वह संख्या अब बढ़कर 2300 के करीब हो गई है। इसी तरह अस्पतालों की सुविधाओं में भी काफी इजाफा हुआ है। लेकिन उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर के मामले कम होने की बजाए बढ़ रहे हैं।

16% प्रसव की जानकारी नहीं: स्वास्थ्य विभाग के अनुसार राज्य में 84% गर्भवती महिलाओं के प्रसव अस्पतालों में हो रहे हैं। लेकिन आज भी 16% प्रसव कहां हो रहे इसकी जानकारी विभाग के पास नहीं है।

एक लाख पर 101 महिलाओं की मौत

उत्तराखंड मातृ मृत्यु की दर में भले ही देश से बेहतर स्थिति में है लेकिन यहां अभी भी प्रति एक लाख प्रसव पर 101 महिलाओं की मौत हो रही है। देश में प्रति लाख प्रसव पर 103 महिलाओं की मौत हो रही है।

गर्भवतियों की मौत के आंकड़े

वर्ष कुल मौतें

2017 84

2018 172

2019 180

2020 175

2021 187

गर्भवती की मौत के मामले में जांच के आदेश दिए

उत्तरकाशी के नौगांव में गर्भवती की मौत के मामले में प्रभारी सचिव डॉ. आर राजेश कुमार ने बुधवार को उत्तरकाशी के डीएम, सीएमओ और दोनों अस्पतालों के सीएमएस से घटना की जानकारी ली। उन्होंने स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. शैलजा भट्ट से भी प्रकरण पर बातचीत कर जांच के आदेश दिए। उन्होंने डीजी हेल्थ को जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा। प्रभारी सचिव ने सीएमएस, सीएमओ और जिलाधिकारी को भी इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा है।

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