हल्द्वानी। शरीर से 90 फीसदी दिव्यांग एक युवती की दर्दनाक मौत हो गई। ठंड से बचने के लिए रखी अंगीठी की आग बिस्तर में लग गई। बिस्तर पर लेटी युवती मदद के लिए चीख भी नहीं पाई और बुरी तरह जल गई। उसे उपचार के लिए एसटीएच लाया गया, लेकिन वह बच नहीं सकी और उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव परिजनों के सुपुर्द कर दिया। बरहेरी बाजपुर ऊधमसिंहनगर निवासी सेवाराम चंद्रा की कई साल पहले मौत हो गई थी। सेवाराम की पत्नी कमलेश चंद्रा घर के पास ही स्थित एक प्राइमरी विद्यालय में भोजनमाता हैं। घर में बेटे योगेश, अतुल और 27 साल की बेटी निक्कू थी। योगेश बेरोजगार है, अतुल पढ़ाई करता है, जबकि निक्कू शरीर से 90 प्रतिशत दिव्यांग थी। चल-फिर पाने में असमर्थ निक्कू ठीक से बोल भी नहीं पाती थी।
अतुल की मानें तो बीती 5 जनवरी की रात खाना खाने के बाद निक्कू को उसके कमरे में सुला दिया था और अतुल अपनी मां के साथ दूसरे कमरे में सो गया था। सोने से पहले ठंड से बचने के लिए परिजनों ने निक्कू के बिस्तर के पास जलती हुई अंगूठी रख दी थी। रात अंगीठी की आग बिस्तर तक पहुंच गई और कुछ ही देर में बिस्तर धधकने लगा।
निक्कू में दिव्यांगता ऐसी थी कि वह न उठ कर भाग सकी और न ही मदद के लिए चीख सकी। रात करीब साढ़े 9 बजे भाई योगेश घर पहुंचा तो उसने निक्कू के कमरे में आग देखी। वह कमरे में पहुंचा तो होश फाख्ता हो गए। आवाज लगाकर योगेश ने और लोगों को मौके पर बुलाया और किसी तरह निक्कू को आग से बाहर निकाला, लेकिन तब तक निक्कू बुरी तरह जल चुकी थी। उसे आनन-फानन में बाजपुर के अस्पताल ले जाया गया। जहां हालत नाजुक होने पर उसे एसटीएच रेफर कर दिया गया। यहां उपचार के दौरान बीते शुक्रवार की सुबह उसकी मौत हो गई। निक्कू की मौत से परिवार में कोहराम है। बाजपुर जैसी मिलती-जुलती घटना कुछ दिन पहले रानीखेत में भी घटी थी। हालांकि इस घटना में मृतक जला नहीं था, लेकिन मौत की वजह अंगीठी ही थी। रानीखेत में हुई इस घटना में मृतक दमा का मरीज था। घटना के रात ठंड से बचने के लिए इस व्यक्ति ने भी कमरे में अंगीठी रख ली थी। अंगीठी के धुएं से रात उसका दम घुटने लगा। उसे गंभीर अवस्था में उपचार के लिए एसटीएच लाया गया और उसकी मौत हो गई।
निक्कू के भाई अतुल ने बताया कि वह पैदाइशी दिव्यांग थी। निक्कू को दैनिक क्रिया के लिए भी किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ती थी। उठा कर बैठाना, कमरे से बाहर लेना कर, कपड़े बदलना आदि सभी काम के लिए निक्कू दूसरों पर निर्भर थी। चूंकि वह ठीक और जोर से बोल नहीं पाती थी, इसलिए अक्सर उससे इशारों में बात करनी पड़ती थी। यही वजह थी कि घटना की रात वह मदद के लिए चीख भी नहीं पाई।