प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी मानी जाती

Update: 2023-08-11 10:09 GMT

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कारावास जाने वाली उत्तराखंड की पहली स्त्री स्वतंत्रता सेनानी

स्वाधीनता आंदोलन के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाली गुमनाम वीरंगानाओं का जब-जब जिक्र होगा बिश्नी देवी साह जरूर याद आयेंगी। अल्मोड़ा की रहने वालीं बिश्नी देवी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कारावास जाने वाली उत्तराखंड की पहली स्त्री स्वतंत्रता सेनानी मानी जाती हैं। उनका पर्सनल जीवन पीड़ा से भरा रहा, फिर भी अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर में उन्होंने काफी समय बिताया, जहां वह स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी बैठकों में नियमित रूप से हिस्सा लेती थीं।

जेल में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं

जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को फूल देती थीं। उनकी आरती करके उनके जज्बे को सलाम करती थीं। आंदोलनकारियों की स्त्रियों का हौसला बढ़ाती थीं। कारावास में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं। बात 25 मई, 1930 की है। अल्मोड़ा नगर पालिका पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निर्णय किया गया। स्वयंसेवकों के एक जुलूस, जिसमें महिलाएं भी थीं, को अंग्रेज सैनिकों ने रोका। इसके बाद संघर्ष हुआ, जिसमें मोहनलाल जोशी और शांतिलाल त्रिवेदी जैसे नायक जख्मी हो गये। इस घटना से वहां पर उपस्थित बिश्नी देवी विचलित नहीं हुईं।

अंग्रेजी हुकूमत को स्त्रियों की यह ललकार पंसद नहीं आयी

उन्होंने दुर्गा देवी पंत और तुलसी देवी रावत समेत अन्य स्त्रियों के साथ ध्वजारोहण किया। अंग्रेजी हुकूमत को स्त्रियों की यह ललकार पंसद नहीं आयी। फिर अंग्रेज पुलिस ने उन्हें अरैस्ट कर अल्मोड़ा कारावास में बंद कर दिया। कारावास से रिहाई के बाद वह खादी के प्रचार में जुट गयीं। तब अल्मोड़ा के आसपास स्वदेशी वस्तुओं को वितरित करने के लिए स्वयंसेवकों की कमी थी। दुकानदार उन वस्तुओं की अधिक मूल्य वसूल रहे थे। बिश्नी देवी ने निर्णय लिया कि वह घर-घर जाकर केवल पांच रुपये में चरखा बेचेंगी। तब बाजार में चरखे की मूल्य 10 रुपये थी।

बिश्नी देवी को समिति की स्त्री प्रबंधक के रूप में चुना गया

उन्होंने स्त्रियों को चरखा चलाना सिखाया। ऐसा करके उन्होंने न केवल खादी का प्रसार किया, बल्कि लोगों को स्वावलंबी भी बनाया। अल्मोड़ा में हरगोविंद पंत के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी समिति का गठन किया गया था। बिश्नी देवी को समिति की स्त्री प्रबंधक के रूप में चुना गया। 1931 में उन्हें फिर से अरैस्ट कर लिया गया। कारावास से रिहा होने के बाद फिर उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आवाज और बुलंद की। अदम्य साहस और मृदु व्यवहार की अमीर बिश्नी देवी साह का 1972 में मृत्यु हो गया।

डाक विभाग की पहल

इस वीरंगाना को पहचान दिलाने के लिए 2021 में डाक विभाग ने पहल की। इसके अनुसार डाक विभाग के लिफाफे पर उनकी तस्वीर और उनका जीवन परिचय लिखा गया, ताकि नई पीढ़ी उन्हें जान सके। पिछले साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी स्वाधीनता आंदोलन में बिश्नी देवी साह के सहयोग को याद किया था।

पति की मृत्यु के बाद घर वालों ने ठुकराया

बिश्नी देवी साह का जन्म 12 अक्तूबर, 1902 को उत्तराखंड के बागेश्वर में हुआ था। वह चौथी कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकीं। करीब 13-14 साल की उम्र में उनका शादी हुआ था। जब वह करीब 16 साल की थीं, तो पति का मृत्यु हो गया। इसके बाद मायके और ससुराल वालों ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था। हालांकि, इससे उनके हौसले में कोई कमी नहीं आयी।

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