कोर्ट के आदेश पर भी सस्ती नहीं हुईं किताबें

Update: 2023-04-07 10:00 GMT

देहरादून न्यूज़: हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य में सहायक पुस्तकों के नाम पर महंगी किताबें खरीदवाने का प्राइवेट स्कूलों का दबाव शिक्षा विभाग की कमजोर इच्छाशक्ति की वजह से भी है.

13 अप्रैल 2018 को नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में निजी स्कूलों को सहायक पुस्तकें लगाने की रियायत तो जरूर दी थी, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि उनका मूल्य एनसीईआरटी की किताबों के मूल्य के आसपास ही होना चाहिए. लेकिन, हाईकोर्ट के जनपक्षीय फैसले पर अमल करने में अफसरों के पसीने छूट गए. सस्ती सहायक पुस्तकें तय करने के लिए सरकार ने एक एक कमेटी जरूर बनाई, लेकिन बाद में कमेटी ने किताबें तय करने से हाथ खड़े कर दिए. मालूम हो कि एनसीईआरटी किताबों को लेकर हाईकोर्ट का रुख पहले दिन से ही साफ था कि यह सरकार का उचित निर्णय है. जब एनसीईआरटी जैसी बेहतर शैक्षिक सामग्री वाली किताबें उपलब्ध हैं तो महंगी किताबों का औचित्य नहीं है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद जनता का दबाव बढ़ने पर तत्कालीन शिक्षा सचिव एवं डीजी-शिक्षा आर. मीनाक्षीसुंदरम ने एसीईआरटी के अपर निदेशक की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया था. 10 फरवरी 2020 को गठित इस कमेटी को एनसीईआरटी से इतर किताबों को तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी.

इन किताबों का तय करना था मूल्य: एनसीईआरटी पहली से आठवीं कक्षा तक के लिए कंप्यूटर, अंग्रेजी ग्रामर, सामान्य ज्ञान, ड्राइंग और कंप्यूटर डॉट काम किताबें प्रकाशित नहीं करती. जबकि कक्षा एक और दो में इन्वायरमेंअर स्टड़ी की किताबें भी नहीं छापती. अभिभावक इन्हीं किताबों की वजह से परेशान है. सहायक पुस्तक के रूप में स्कूल इन विषयों की किताबें खरीदवा रहे हैं, पांच सौ से हजार रुपये तक तक आती हैं. इनमें कुछ किताबों का प्रयोग हो भी नहीं पाता है.

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