जोशीमठ: उत्तराखंड में जोशीमठ के बाद अब चमोली व ऋषिकेश में भी दहशत का माहौल है। जोशीमठ में लगभग 600 से ज्यादा घरों के लोगों को शिफ्ट कराया जा रहा है। सरकार लगातार बचाव कार्य में जुटी है और लोगों को राहत देने की बात कह रही है। इसी बीच चमोली के कर्णप्रयाग में भी जोशीमठ जैसे हालात बन गए हैं। जोशीमठ से 75 किलोमीटर दूर कर्णप्रयाग की बहुगुणा कॉलोनी में 2 दर्जन से ज्यादा मकानों में दरारें आ गई हैं। बहुगुणा कॉलोनी के इन मकानों में पहली दरार करीब एक दशक पहले नजर आई लेकिन अब ये दरारें चौड़ी और लंबी हो गई हैं। वहां के निवासियों का कहना है कि करीब साल 2013 से भू-धंसाव और मकान में दरारें आ रही हैं।
निर्माण कार्यों में नियमों का उल्लंघन भी भू-धंसाव का कारण
कर्णप्रयाग के एक निवासी बीपी सती ने मीडिया को बताया कि भू-धंसाव मंडी के निर्माण और ऑल वेदर रोड की वजह से हुआ। उन्होंने बताया कि अभी 2 दिन पहले ही धरना दिया गया था जिसके बाद शासन-प्रशासन ने सर्वे तो किया लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया। घर की हालत बहुत दयनीय है। बीपी सती की पत्नी का कहना है कि लाखों रुपए लगा चुके हैं और कितने लगाएं कहां जाएं। सीएम धामी से गुहार है कि वो हमें बचा लें। चमोली और ऋषिकेश में भी मकानों में दरारें आ रही हैं। कर्णप्रयाग के अलावा लैंडोर के लोग भी डरे हुए हैं। जोशीमठ से लगभग 75 किलोमीटर दूर कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में कम से कम 50 घरों में 2015 से दरारें आ रही हैं। स्थानीय लोग इन दरारों के लिए भूमि के धीरे-धीरे धंसने को जिम्मेदार मानते हैं। इसके लिए राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण निर्माण कार्यों में नियमों के उल्लंघन को भी जिम्मेदार मानते हैं। लोगों का कहना है कि पिंडार नदी के कारण होने वाला कटाव और बारिश के पानी को बेतरतीब ढंग से निकाला जाना इस सबकी वजह है।
कर्णप्रयाग अलकनंदा व पिंडार नदियों के संगम पर होता है कटाव
कर्णप्रयाग नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष सुभाष गैरोला ने कहा कि बहुगुणा नगर के ऊपर भूस्खलन से आए मलबे ने सबसे पहले 2015 में घरों को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद नगर परिषद ने बचाव कार्य के प्रयास किए थे। यही हाल बीते सालों में नेशनल हाइवे के चौड़ीकरण और कर्णप्रयाग-कनखूल सड़क के किनारे एक नाली के अभाव में बारिश के पानी के बहाव के साथ होने लगा। गैरोला ने कहा कि कर्णप्रयाग अलकनंदा और पिंडार नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण मानसून के दौरान नियमित और भारी मिट्टी का कटाव होता है। उन्होंने कहा कि मानसून के दौरान घरों में भी पानी घुस जाता है जिससे मकानों की नींव कमजोर हो जाती है।