उत्तराखंड में है सुन्दर फूलों की घाटी: लाखो पर्यटक आते है लुत्फ उठाने, हनुमान जी से भी है नाता
चमोली गढ़वाल स्पेशल : उत्तराखंड स्थित फूलों की घाटी बेहद लोकप्रिय है. यहां हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक आते हैं और फूलों की घाटी की सुंदरता का लुत्फ उठाते हैं. यह राष्ट्रीय उद्यान सूबे के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में है. इसे विश्व धरोहर भी घोषित किया गया है. पर्यटक यहां कई दिनों का टूर पैकेज लेकर घूमने जाते हैं और कैंप लगाकर रहते हैं. इसके अलावा, यह क्षेत्र ट्रेकिंग के लिए भी मशहूर है. यह घाटी 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली है. यहां आपको फूलों की 500 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिल जाएंगी. हालांकि, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर पर्यटकों को शिविर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती है. ऐसे में पर्यटक इस घाटी के निकटतम कैंपिंग साइट पर ही कैंपिंग करते हैं. फूलों की घाटी का नजदीकी कैंपिंग साइट घांघरिया का सुरम्य गांव होगा. जहां शिविर लगाकर पर्यटक कई दिनों तक रहते हैं और फूलों की घाटी के आसपास के पर्यटक स्थलों की भी घुमक्कड़ी करते हैं. इस आर्टिकल में आपको फूलों की घाटी के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है.
अगर आप फूलों की घाटी घूमने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको इसका बेस्ट टाइम भी जानना जरूरी है. फूलों की घाटी हर साल 1 जून को खुलती है और अक्टूबर में बंद होती है. यहां विजिट करने का सबसे अच्छा वक्त जुलाई से लेकर सितंबर के बीच माना जाता है. इस दौरान आपको इस घाटी में फूलों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलेंगी जो कि आपका दिल जीत लेंगी. अगर आप खिले हुए फूलों को देखना चाहते हैं, तो आपको इस घाटी के भ्रमण के लिए अगस्त महीने में जाना चाहिए. इस वक्त यहां चारों तरफ फूल ही फूल खिले रहते हैं. हालांकि, इस मौसम में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण इस क्षेत्र में जाना मुश्किल भी हो जाता है.
फूलों की घाटी की खोज सबसे पहले फ्रैंक स्मिथ ने 1931 में की थी. फ्रैंक ब्रिटिश पर्वतारोही थे. फ्रेंक और उनके साथी होल्डसवर्थ ने इस घाटी को खोजा और उसके बाद यह प्रसिद्ध पर्यटल स्थल बन गया. इस घाटी को लेकर स्मिथ ने "वैली ऑफ फ्लॉवर्स" किताब भी लिखी है. फूलों की घाटी में उगने वाले फूलों से दवाई भी बनाई जाती है. हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक फूलों की घाटी देखने के लिए आते हैं.
संजीवनी बुटी लेने आये थे हनुमान : जन श्रुती के अनुसार रामायण काल में भगवान हनुमान जी संजीवनी बुटी लेने के लिए फूलों की घाटी आये थे. फूलों की इस घाटी को स्थानीय लोग परियों का निवास मानते हैं. यही कारण है कि लंबे समय तक लोग यहां जाने से कतराते थे. स्थानीय बोली में फूलों की घाटी को भ्यूंडारघाटी कहा जाता है. इसके अलावा, इस घाटी को गंधमादन, बैकुंठ, पुष्पावली, पुष्परसा, फ्रैंक स्माइथ घाटी आदि नामों से बुलाया जाता है. स्कंद पुराण के केदारखंड में फूलों की घाटी को नंदनकानन कहा गया है. कालिदास ने अपनी पुस्तक मेघदूत में फूलों की घाटी को अलका कहां है. यह विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी नर और गंधमाधन पर्वतों के बीच स्थित है. इसके पास ही पुष्पावती नदी बहती है. पास ही में दो ताल और लिंगा अंछरी हैं. यह घाटी मई से लेकर नवंबर तक हिमाच्छादित रहती है. हालांकि, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कई फूलों की घाटियां हैं, लेकिन चमोली जिले में स्थित इस घाटी को देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी तादाद में टूरिस्ट आते हैं.
अगर आप दिल्ली से फूलों की घाटी बस से जा रहे हैं तो कश्मीरी गेट से बस पकड़ें. आपको यहां से ऋषिकेश तक बस मिलेगी और वहां से आगे जोशीमठ वाली बस में बैठना होगा. दिल्ली से फूलों की घाटी की दूरी करीब 500 किलोमीटर होगी. ऋषिकेश से इस घाटी की दूरी 270 किलोमीटर है. बस या गाड़ी द्वारा आप गोविंदघाट तक ही जा सकेंगे और उसके बाद आपको चलकर जाना होगा. यह ट्रेक रूट करीब 8 किलोमीटर का है जिसे पार करने के बाद आप फूलों की घाटी पहुंच जाएंगे.