इलाहाबाद न्यूज़: माघ मेला शुरू होने से पहले उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा में प्रदूषण की जांच शुरू कर दी है. तीन दिन की जांच में ब्रिज के नीचे गंगा में प्रदूषण अधिक मिल रहा है. पीसीबी ने रसूलाबाद घाट पर जांच नहीं की, लेकिन यहां गंगाजल काला होता दिखाई पड़ रहा है.
रसूलाबाद घाट और शास्त्रत्त्ी ब्रिज के नीचे गंगा के प्रवाह में एक समानता है. रसूलाबाद घाट से पहले राजापुर एसटीपी का शोधित पानी गंगा में मिलता है. ब्रिज के पहले राजापुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में शोधित नालों का पानी गंगा में मिलता है. नागवासुकि मंदिर, दशाश्वमेध घाट और रसूलाबाद घाट के आसपास रहने वाले कहते हैं कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का पानी जहां भी गंगा में मिल रहा, वहीं प्रदूषण साफ देखा जा सकता है. रसूलाबाद घाट के विष्णू कहते हैं कि माघ मेला, कुम्भ से पहले सरकारी एजेंसी पानी की जांच करने आती है. जबकि पूरे साल घाट पर पानी काला रहता है. अलोपीबाग के पार्षद कमलेश सिंह ने कहा कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों में नालों के पानी के शोधन पर नजर रखनी चाहिए. प्लांटों से प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी गंगा में आता है. प्लांट से गंगा में आने वाला पानी पूरी तरह साफ नहीं होता. इसलिए प्लांटों का पानी जहां गंगा में मिलता है, उसके बड़े दायरे में गंगाजल में प्रदूषण अधिक मिलना तय है.
गंगा की लगातार जांच हो रही है. जांच का उद्देश्य यह पता लगाना है कि प्रदूषण कहां और कैसे बढ़ रहा है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों से निर्धारित दायरे में गंगा का जल प्रदूषित दिखाई पड़ रहा है तो इसका समाधान निकालेंगे.
-आरके सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रयागराज.
बेहद दयनीय हालत:
राजापुर और संगम के बीच नालों का पानी साफ कर गंगा में बहाने के लिए दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बने हैं. हकीकत में सभी नाले प्लांटों से जोड़े नहीं जा सके हैं. इन्हीं नालों का पानी साफ करने के लिए बायोरेमेडियल विधि अपनाई जाती है, लेकिन इसमें भी लापरवाही हो रही है. रसूलाबाद में रहने वाले कहते हैं कि नालों का पानी साफ करने वाले केमिकल ड्रम में ही रखे हैं.