ताजमहल के 22 कमरों का क्या है राज?, आखिरी बार 88 साल पहले खुले थे दरवाजे

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Update: 2022-05-09 17:25 GMT

नई दिल्ली: ताजमहल के बंद 22 कमरों के रहस्य को लेकर उत्सुकता बढ़ती जा रही है। सभी की निगाहें अब लखनऊ हाईकोर्ट बेंच पर टिकी है। इस संबंध में कोर्ट में दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है। ऐसी ही एक याचिका आगरा के एडीजे कोर्ट में भी विचाराधीन है। कोर्ट के फैसले पर ही निर्भर करेगा कि बंद इन 22 कमरों को खोला जाएगा या नहीं।

ताजमहल के जिन 22 कमरों पर ताले लगे हैं, उनको स्मारक निर्माण की तिथि 1653 के 281 साल बाद यानी 1934 में खोला गया था। उस वक्त कोई विवाद नहीं था। उस वक्त इन कमरों को ताजमहल को किसी प्रकार की कोई क्षति तो नहीं पहुंच रही, इसका अध्ययन करने के लिए खोला गया था। अब 88 साल बाद 2022 में अयोध्या के रजनीश सिंह द्वारा इन 22 कमरों को खोलने और इनकी जांच के लिए समिति गठित करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में याचिका दायर की गई है। इसके साथ ही ताजमहल और तेजोमहालय का विवाद सुर्खियों में आ गया है।
एएसआई से मिली जानकारी के मुताबिक, ताजमहल के बंद कमरे मुख्य मकबरे और चमेली फर्श के नीचे बने हैं। ये वर्षों से बंद हैं। चमेली फर्श पर यमुना किनारा की तरफ बेसमेंट में नीचे जाने के लिए दो जगह सीढ़ियां बनी हैं। इनके ऊपर लोहे का जाल लगाकर बंद कर दिया गया है। 40 से 45 साल पहले तक सीढ़ियों से नीचे जाने का रास्ता खुला हुआ था। इतिहासकार प्रो. राजकिशोर राजे का कहना है कि यदि इन कमरों को खोलकर निष्पक्ष जांच होती है, तो कुछ नया रहस्य सामने आ सकता है।
बंद हिस्सों की वीडियोग्राफी की याचिका विचाराधीन
लखनऊ हाईकोर्ट बेंच में दायर की गई याचिका से सात साल पहले 2015 में लखनऊ के हरीशंकर जैन ने आगरा के सिविल कोर्ट में ताजमहल को लार्ड श्रीअग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजोमहालय मंदिर घोषित करने को याचिका दायर की थी। इसका आधार बटेश्वर में मिले राजा परमार्दिदेव के शिलालेख को बताया था। 2017 में केंद्र सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने प्रतिवाद पत्र दाखिल करते हुए ताजमहल में कोई मंदिर या शिवलिंग होने या उसे तेजोमहालय मानने से इंकार कर दिया था। बाद में जिला जज ने याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि जैन ने फिर से रिवीजन के लिए याचिका दायर की। ताजमहल के बंद हिस्सों की वीडियोग्राफी कराने से संबंधित याचिका एडीजी पंचम के यहां अभी विचाराधीन है।
इतिहासकार ओक के अपने दावे रहे
इतिहासकार पीएन ओक ने ट्रू स्टोरी ऑफ ताज में लिखा है कि यह एक शिव मंदिर या राजपूताना महल था, जिसे शाहजहां ने कब्जा कर मकबरे में बदल दिया। ओक ने दावा किया कि ताजमहल से हिंदू अलंकरण और चिन्ह हटा दिए गए और जहां नहीं हटा पाए उन्हें बंद कर दिया। ओक के अनुसार, जिन कमरों में उन वस्तुओं और मूल मंदिर के शिवलिंग को छुपाया गया है, उन्हें सील कर दिया गया है। उन्होंने अपनी किताब में दावा किया है कि मुमताज महल को उनकी कब्र में दफनाया ही नहीं गया था। अपने दावे के समर्थन में ओक ने यमुना नदी की ओर के ताजमहल के दरवाजों के काठ की कार्बन डेटिंग के परिणाम दिए हैं। उन्होंने ये भी लिखा कि किसी भी मुस्लिम इमारत के नाम के साथ कभी महल शब्द प्रयोग नहीं हुआ है। ताज और महल दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं। साथ ही संगमरमर की सीढ़ियां चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा चली आ रही है। यह हिंदू मंदिरों में निभाई जाने वाली परंपरा है। मकबरे में जूता उतारने की अनिवार्यता नहीं रही है
दो बार और उठी थी आवाज
वर्ष 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तब राज्यसभा सांसद रहे विनय कटियार ने ताजमहल का मुद्दा उठाया था। कटियार ने ताजमहल को तेजोमहल घोषित करते हुए योगी आदित्यनाथ को यह सलाह दी कि उन्हें चाहिए कि वह ताजमहल जाएं और उसमें हिंदू चिह्नों को खुद देख लें। उसके पांच साल बाद अप्रैल 2022 में अयोध्या तपस्वी छावनी से जुड़े संत जगद्गुरु परमहंस आचार्य आगरा आए। उन्होंने आरोप लगाया था कि भगवा वस्त्र पहनने की वजह से उन्हें ताजमहल में नहीं घुसने दिया गया। बाद में परमहंस आचार्य मई में ताजमहल में प्रवेश कर शिव पूजा करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर कीठम अतिथि गृह में नजरबंद कर दिया। और बाद में अयोध्या भेज दिया। उन्होंने वहां भी कहा कि ताजमहल तेजोमहल है। इसका सही इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। इसको लेकर वह सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे।
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