वृद्धाश्रम में अपनों के इंतजार में पथरा गई आंखें, साथियों के साथ मनाई दिवाली
मेरठ: जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर जब बुजुर्गों को अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब इनके अपने ही उन्हें अपने पास रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बावजूद इनके अपनों ने इन्हें वृद्धाश्रम में इनके हाल पर जीने के लिए छोड़ दिया है। ऐसे लोगों की बाकी बची हुई जिदंगी दूसरों के रहमोकरम पर टिक गई है। इन बूढ़ी और बेसहारा आंखों में अब आतिशबाजी की चमक के बजाय उन दर्द भरे पलों की चुभन भरी हुई जब उनके लाड़ले बेटों ने नौ माह तक पेट में रखकर धरती पर लाने वाली मां को बेसहारा छोड़ दिया था। दीपावली इनके लिये हर बार आती है और चली जाती है, लेकिन उनकी जिदंगी बजाय रोशन होने के उस फ्लैशबैक में खो जाती है
जिसमें बेटा रात में बिस्तर गीला करता था तो मां बजाय दूर जाने के उसी गीली जगह पर सो जाती थी। वृद्ध आश्रम में ऐसे कहानियां आम है, लेकिन मजबूर मां अपने नकारा औलादों के बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसे लगता है कि बेरहम समाज कहीं परवरिश पर उंगली न उठा दे। आश्रम संचालकों ने अपनी तरफ से इन बुजुर्गों को अस्थाई खुशी देने के लिये खुशियां भी बांटी, लेकिन वो पल भर में उड़नछू हो गई। रजबन स्थित स्वामी सत्यानंद सेवा धाम (अपना घर) आश्रम पिछले 22 सालों से अपनों के द्वारा ठुकराए गए बुजुर्गों का आसरा बना है। वृद्धाश्रम में इस समय कुल 12 बुजुर्ग रहते हैं। इन बुजुर्गों का दुनिया में कोई नहीं है। ऐसा कहना बेमानी होगी, लेकिन इनके दुनिया में जो अपने हैं वह होने के बावजूद न होने के बराबर है।
आश्रम का संचालन करने वाले सेवादारों ने जानकारी देते हुए बताया दिवाली के त्योहार पर सभी बुजुर्ग अपनों की राह ताकते रहे। उन्हें उम्मीद थी कि शायद कोई अपना उनसे दिवाली के मौके पर मिलने जरूर आएगा, उन्हें गले लगाएगा, उनके साथ अपनी खुशियां बांटेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सभी लोग दो दिन तक आश्रम के दरवाजों पर नजर गड़ाए बैठे रहे, लेकिन कोई नहीं आया। सुनील विश्नोई व्यथित दिखे और बोले कि पत्नी से तलाक के बाद घर वालों ने यहां छोड़ दिया। अब यही घर है और इन्हीं लोगों के साथ पर्व मनाता हूं। दूसरे सुनील कुमार परिवार के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। बुजुर्ग कमलावती के भाई मिलने आते हैं और दीपावली का पर्व आश्रम वालों के साथ मनाकर खुशी मिली।
गंगानगर स्थित श्री सांई सेवा चैरेटेबल ट्रस्ट में इस समय कुल 28 बुजुर्ग रहते हैं। जिन्हें उनके अपनों ने ठुकरा दिया है। इनमें 16 महिलाएं व 12 पुरुष है। सभी 60 साल से अधिक आयु के हैं। अधिकांश वह हैं जिन्हें उनके बच्चों ने घर से निकाल दिया या ठुकरा दिया। कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके बच्चे विदेश चले गए। धन-संपत्ति कुछ भी पास ना होने के कारण यह बुजुर्ग अपना अंतिम समय कहां काटे, इसलिए उन्होंने आश्रम में शरण ले ली। 2 अप्रैल 2017 को नम्रता शर्मा ने इस आश्रम को शुरू किया था। दिवाली के मौके पर सभी बुजुर्ग अपनों की आस में दरवाजे पर पलके बिछाकर बैठे रहे कि शायद कोई अपना उनसे त्योहार पर मिलने आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ को छोड़कर बाकी की बात की जाए तो उनकी औलाद है। दिवाली पर उनसे मिलने तक कोई नहीं आया, अंत में सभी ने एक-दूसरे के साथ मिलकर दिवाली मनाई। आश्रम संचालिका नम्रता शर्मा ने सभी बुजुर्गों के लिए मिठाई व पटाखों का इंतजाम किया था।