मेरठ: जिस समय देश में पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान की शुरुआत हुई थी तब पोलियो टीमों का जमकर विरोध हुआ करता था। कारण यह कि इस वैक्सीन पर लोग विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोग सवालिया निशान लगा रह थे। उनका आरोप था कि पोलियो वैक्सीन पीने के बाद उनके बच्चे नपुंसक हो सकते हैं,
जिसके बाद विभिन्न स्थानों पर मुसलमानों ने इस वैक्सीन का विरोध किया था। इसके बाद टीकाकरण मुहिम में भी कई बार अल्पसंख्यकों का विरोध टीकाकरण टीमों को झेलना पड़ा। इन्हीं सब विरोधों को दूर करने के लिए विशेष रणनीति बनाई गई और इसी के तहत 'अंडर सर्वड स्ट्रेटजी' का गठन किया गया।
शुक्रवार को जिस प्रकार रोहटा में एक छोटे बच्चे को टीका लगने के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, जहां उसकी मौत हो गई। इससे कई लोग वैक्सीनेशन पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। हांलाकि स्वास्थ्य अधिकारी इसे सिरे से नकारने की बात कहकर इंवेस्टीगेशन पर फोकस कर रहे हैं।
इसके अलावा प्रदेश के कुछ जिलों में जिस प्रकार बच्चों को पिलाई जाने वाली विटमिन ए की खुराक घी की तरह जमी हुई मिली उससे भी लापरवाही की इंतेहा झलकती है। इन्ही सब चीजों को देखते हुए अंडर सर्वड स्ट्रेटजी की जरुरत महसूस की जाने लगी है।
क्या है अंडर सर्वड स्ट्रेटजी?
दरअसल यह एक ऐसी रणनीति है जिसके तहत मुस्लिम विरोधी परिवारों को समझाने के लिए मस्जिद, मदरसों, दरगाहों, दीनी जलसों एवं उलेमाओं की मदद ली जाती है। इसके तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मॉनिटर्स मुस्लिम धर्मावलंबियों को इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि वो विभिन्न वैक्सीन के प्रति मुस्लिम समाज में फैली भ्रांतियों को अपने स्तर से दूर करवाएं।
इसके तहत विभिन्न उलेमा, मस्जिदों के इमाम एवं मदरसो के मोहतमिम खुद वैक्सीनेशन साइट्स पर मौजूद रहते हैं तथा पोलियो अभियान के तहत विरोधी परिवरों के घरों तक पर उन्हें समझाने जाते हैं। इसी रणनीति के तहत मस्जिदों से पोलियो की वैक्सीन पिलवाने एवं टीकाकरण करवाने की भी अपील की जाती है। इसके साथ साथ दीनी जलसों में पोलिया ड्रॉप एवं वैक्सीनेशन की हिमायत की जाती है।
पिछले कुछ सालों में वैक्सीनेशन व पोलियो का विरोध कम होने के चलते डब्ल्यूएचओ ने इस स्ट्रेटजी को बाइंडअप कर दिया गया था। इस स्टेÑेटजी के तहत काम करने वाले विभिन्न एसएमओ (सर्विलेंस मेडिकल आॅफिसर) और एमएफ (फील्ड मॉनिटर्स) को सर्विलेंस की मेन स्ट्रीम में लगा दिया गया था लेकिन विरोधी परिवारोें की संख्या को कम करने के लिए अब फिर से इस स्ट्रेटजी की जरुरत महसूस की जाने लगी है।