उत्तर-प्रदेश: पनकी दोहरे हत्याकांड में भी शामिल थे दो आरोपी, दबौली हत्याकांड में तीन और आरोपियों की गिरफ्तारी

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Update: 2022-07-15 15:57 GMT
कानपुर सिख विरोधी दंगे की जांच में जुटी एसआईटी ने दबौली में हुई सात लोगों की हत्या में तीन और आरोपियों को बुधवार रात गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। आरोपियों की पहचान बी ब्लॉक पनकी निवासी चंद्र प्रताप सिंह (65), गुड्डू उर्फ अनिल निगम (74) और दबौली निवासी रामचंद्र पाल (66) के रूप में हुई है। केस में यह छठवीं गिरफ्तारी है। 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में शहर में 127 सिखों की हत्या कर दी गई थी।
एसआईटी डीआईजी बालेंदु भूषण ने बताया कि दंगे के वक्त दबौली में विशखा सिंह उनकी पत्नी सरनकौर, बेटी गुरुवचन सिंह, बेटे जोगेंद्र, गुरुचरन, छत्तरपाल और गुरुमुख सिंह की हत्या की गई थी। गोविंदनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई थी। इस केस के दो गवाह ही बचे थे। इनकी गवाही के बाद चंद्र प्रताप सिंह, अनिल निगम और दबौली निवासी रामचंद्र पाल को गिरफ्तार किया गया है। सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
एसआईटी ने कुछ दिन पहले ही केस में पूर्व पार्षद भरत शर्मा व उसके सगे भाई योगेश शर्मा और कैलाश पाल को जेल भेजा था। एआईटी अब तक 22 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है।
परिवार को जिंदा जला दिया था
दंगाइयों ने विशाख सिंह के घर पर धावा बोल पूरे परिवार को पहले पीटकर बेहोश कर दिया था। इसके बाद पूरे घर में पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी थी, जिसमें एक ही परिवार के सात लोगों की मौत हो गई थी।
पनकी में हुए दोहरे हत्याकांड में भी शामिल थे दो आरोपी
सिख विरोधी दंगे में बुधवार रात पकड़े गए तीन आरोपियों में दो आरोपी पनकी में हुए दोहरे हत्याकांड में शामिल थे। डीआईजी एसआईटी बालेंदु भूषण ने बताया कि दंगाइयों ने पनकी निवासी सरदार स्वर्ण सिंह और उनके बेटे सरदार गुरुजेंदर सिंह को जिंदा जला दिया था। मृतक परिवार की कंवलजीत कौर की ओर से मुकदमा दर्ज कराया गया था। पकड़े गए तीन आरोपियों में पनकी बी ब्लॉक निवासी चंद्रप्रताप सिंह और गुड्डू उर्फ अनिल निगम शामिल थे। वहीं दबौली नरसंहार में पकड़े गए दबौली निवासी रामचंद्र पाल पूर्व पार्षद कैलाश पाल का भाई है।
एक नजर में समझिए पूरी जांच....
96 अभियुक्तों को एसआईटी ने अपनी जांच में खोजा था।
23 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है।
73 आरोपी जीवित बचे हैं।
22 गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
51 आरोपियों की गिरफ्तारी बची है।
शासन दे सकता है उम्र देखकर राहत, जमानत भी हो सकती है
कानपुर। सिख विरोधी दंगे में एसआईटी ने 38 सालों के बाद जिन 22 लोगों की गिरफ्तारियां की हैं वे सभी उम्रदराज हैं। कोई 70 साल का है तो कोई 85 साल का। हालांकि उन्हें शासन स्तर से ही उनकी उम्र व अच्छे व्यवहार के आधार पर सजा में कुछ राहत मिल सकती है।
सिख विरोधी दंगे के आरोपी उम्रदराज हैं, लेकिन इससे मुकदमे में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उन्हें भी सामान्य आरोपियों की तरह ही पूरी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरते हुए विचारण (ट्रायल) का सामना करना पड़ेगा। उम्र व मानवीयता के आधार पर आरोपियों को जमानत में तो राहत मिल सकती है, लेकिन मुकदमे के फैसले में लाभ नहीं मिलेगा। 
कानून के अनुसार न्यायाधीश किसी भी अपराध के लिए अभियुक्त को न्यूनतम सजा से कम दंड नहीं दे सकते। सजा के निर्धारण में अभियुक्त की उम्र का कोई महत्व नहीं होता। सजा सुनाए जाने के बाद शासन स्तर पर ही अभियुक्तों को उनकी उम्र व अच्छे व्यवहार के आधार पर सजा में कुछ राहत मिल सकती है। 
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