मेरठ। रजिया सज्जाद जहीर एक उर्दू लेखिका, अनुवादक और प्रगतिशील लेखक संघ की एक प्रमुख सदस्य थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रजिया सज्जाद जहीर कलम की ताकत को पहचानतीं थी। आज विवि के उर्दू विभाग में उनकी याद में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें वक्ताओं ने रजिया सज्जाद के बारे में अपने विचार रखे। वक्ता रूकसाना खान ने कहा कि रजिया सज्जाद जहीर का जन्म 15 अक्टूबर 1918 को अजमेर, राजस्थान में एक शैक्षिक परिवार में हुआ था। उनके पिता अजमेर इस्लामिया कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। 20 साल की उम्र में, उन्होंने कवि, स्तंभकार और प्रसिद्ध वकील सज्जाद जहीर से शादी की। जहीर प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने बताया कि रज़िया ने अजमेर से स्नातक की डिग्री के साथ-साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। 1940 में, रज़िया और उनके पति साप्ताहिक सभाओं का आयोजन करते हुए सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय रूप से शामिल हो गए।
डा0 असलम ने कहा कि रजिया राजनीतिक विचारों को कट्टरपंथी बनाने के लिए जिम्मेदार मानती थीं। वह उन महिला कार्यकर्ता में से थीं, जिन्होंने महिलाओं की प्रकृति और स्थान की गांधीवादी विचारधाराओं पर सवाल उठाया।" उन्होंने बताया कि आजीविका के लिए रजिया ने लखनऊ में पढ़ाना, लेख लिखना और अनुवाद करना शुरू किया। वहां उन्होंने करीब 40 किताबों का उर्दू में अनुवाद किया। उनके सर्वश्रेष्ठ किताबों का उर्दू में अनुवाद भी किया गया। उन्होंने मुल्क राज आनंद के सात साल (1962) के साथ-साथ 'सियाराम शरण गुप्ता की नारी ' (साहित्य अकादमी द्वारा औरत के रूप में प्रकाशित) का भी अनुवाद किया। रजिया का पहला पहला उपन्यास 1953 में 'सर-ए-शाम ' नाम से प्रकाशित हुआ था, जबकि एक और उपन्यास 'कांटे एक साल बाद ' 1954 में जारी हुआ था और उनका तीसरा उपन्यास 'सुमन ' 1964 में आया था। उन्होंने अपने पति के पत्रों को भी संपादित और प्रकाशित किया था जो कि उन्होंने उन्हें जेल से भेजा था और संकलन का नाम 'नुकुश-ए-जिंदन' (1954) रखा गया। उन्होंने कहा कि रज़िया के पति 1956 में पाकिस्तान की जेल में रहने के बाद भारत लौट आए और लखनऊ में अपने परिवार के साथ शामिल हो गए। 18 दिसंबर 1979 को रजिया सज्जाद का दिल्ली में निधन हो गया। युवा समाज को रज़िया के जीवनी से प्रेरणा लेते हुए साहित्य को अपनी अभिरुचि बनाना चाहिए। इस दौरान रजिया की किताबों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।