संकट में डूबी यमुना से लुप्त हुई कछुआ-मछली
जिम्मेदार कुंभकर्णी नींद में सोये हुए हैं।
मथुरा: यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के कारण पानी का जहर बन गया है। इस पानी में कचुआ-मछली के साथ अन्य जलचरों की संख्या बड़ी ताड़त में कम हो गई है। इसके लिए जिम्मेदार कुंभकर्णी नींद में सोये हुए हैं।
श्रीकृष्ण नगरी में कालिंदी कलाने वाली यमुना में जलचरों का जीवन खतरे में पड़ गया है। इससे यमुना में जलचरों की संख्या काफी कम हो गई है। रहने वाले इसमें कछुआ-मछली अब कहीं-कहीं ही दिखाई देते हैं। होने वाला मछली आखेट तो लगभग बंद सा ही हो गया है। कछुए भी या तो मर गए या फिर यमुना से अन्यत्र चले गए हैं। यहां तो धर्मावलंबियों द्वारा दाना आदि के कारण कुछ जलचर दिख जाते हैं लेकिन मथुरा से डूबने की स्थिति और भी बदतर हो जाती है। आगे कहीं भी जलचर नजर नहीं आता.
हरनौल एस्केप से है रिलीफ मथुरा में पतित पूरी का पानी आचमन तो देर तक भी नहीं रह गया। हरनौल एस्केप में कभी-कभी गंगाजल छूटने से रिलीफ को राहत मिलती है, लेकिन उससे पहले पलावल, स्वतंत्रता आदि क्षेत्र और यहां से आगे के क्षेत्र में रिलीफ रिक्वेस्ट दिखती है।
मुख्य कारण नालों का पानी यमुना प्रदूषण का मुख्य कारण दिल्ली से लेकर यहां तक कि इनमें प्लास्टिक की बोतलें और अब फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी और कचरा है। दिल्ली से डायनासोर ही यमुना में सिर्फ नालों का गंदा पानी ही दिखाई देता है। जबकि ठीक है इससे पहले हथिनी कुंड बैराज तक की स्थिति काफी ठीक है।
कुम्भकर्णी नींद में सोए जिम्मेदार 300 साल तक जीने वाले कछुओं की संख्या यमुना में घटना ही पानी पर बड़ा सवाल है। मछली तो मामूली प्रदूषण से ही मर जाती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शामिल है। इसके बाद भी जिम्मेदार लोग कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं।