शहरों के जलभराव को चुनावी मुद्दा बनाने का समय

Update: 2023-07-29 06:17 GMT

अलीगढ़ न्यूज़: शासन-प्रशासन और सत्ताधारी दल के तमाम दावों के बावजूद शहर फिर विकट जलभराव से जूझ रहा है. असल में जलभराव, जाम और पर्यावरण के मुद्दे राजनीतिक दलों के एजेंडे में नहीं है. साथ ही मतदाता चुनावों में जात-पात और धर्म के नाम पर वोट करते हैं, लेकिन मूल समस्याओं को भूल जाते हैं. शहर और कसबों के लोगों को इन मुद्दों पर गंभीर होना पड़ेगा तभी विकराल होती इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है.

देश-प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए शहरों को ग्रोथ इंजन के रूप में देखने की बात कही जा रही है. आने वाले समय में शहरों की जनसंख्या में भी खासा इजाफा होगा. ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ भी लगातार बढ़ रहा है. आने वाले समय में सभी को खासकर भारी बरसात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ेगा. सबसे खास बात यह है कि शासकों के एजेंडों में जलभराव, जाम और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कुछ खास नहीं है. इसकी एक बानगी स्मार्ट सिटी अलीगढ़ की है, जहां एक हजार करोड़ की प्लानिंग में शहर के जलभराव को मामूली रूप से शामिल किया गया, जबकि यह शहर की सबसे बड़ी समस्या है. नगर निगम और प्राधिकरण के टाउन प्लानरों के पास शहर को जलभराव से निजात दिलाने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है. सांसद-विधायक और सरकारों के पास रटा-रटाया जवाब ही होता है कि काम कराया जा रहा है.

इंटीग्रेटिड स्ट्रोम वाटर ड्रेनेज सिस्टम की जरूरत

एएमयू के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर नदीम खलील अलीगढ, आगरा समेत कई शहरों के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट पर बारीकी से काम कर चुके है. प्रो खलील का कहना है कि समस्या से निपटने को इंटीग्रेटिड स्ट्रोंम वाटर ड्रेनेज सिस्टम बनना चाहिए. पूरे शहर की प्लानिंग होनी चाहिए.जगह-जगह पंपिंग स्टेशन बनाये जाए. यह करीब दो हजार करोड का खर्च से संभव हो सकेगा. प्रो नदीम ने बताया कि शहर का दस प्रतिशत एरिया ही स्मार्ट सिटी में लिया है. इसी के चलते स्मार्ट सिटी में होने और करोडों रुपये खर्च होने के बाद भी यह समस्या जस की तस बनी है.

नए सिरे से शहरों की प्लानिंग की जरूरत

निकायों में विकास योजनाओं को अंतिम रूप जनता के चुने हुए प्रतिनिधि देते हैं. आमतौर पर निकाय की राजनीति के चलते शहरों के विकास की दूरगामी और व्यवस्थित प्लानिंग नहीं हो पाती है. शहर को अगले बीस-तीस साल में किस प्रकार की योजनाओं की जरूरत है, उस पर कोई काम नहीं होता. अलीगढ़ और जिले के अन्य कसबों का हाल बेहाल होता जा रहा है. यदि शहरों को विकसित रूप में परिवर्तित करना है तो सरकार को पैसा, अच्छी प्लानिंग और बेहतरीन टाउन प्लानरों की सेवा देनी होगी.

लोगों को भी सीखना होगा कूड़ा प्रबंधन

शहर के लोगों को भी कूड़ा प्रबंधन के गुर सीखने पड़ेंगे. सारी जिम्मेदारी निगम और सरकार की नहीं है. आमतौर पर लोग पालीथिन में कूड़ा भरकर बाहर अथवा नालों में फेंक देते हैं. जो नालों के जाम का बड़ा कारण है. लोगों को भी इन समस्या और चुनौती को समझते हुए सूखा और गीला कूड़ा का प्रबंधन सीखकर मदद करनी होगा नहीं सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही झेलना पड़ेगा.

नालों को साल में तीन-चार बार साफ करना पड़ेगा

अभी तक निकायों में मानसून से कुछ समय पहले ही नाले साफ करने की पंरपरा चली आ रही है. नालों की सफाई के दौरान इस पर पैनी नजर भी नहीं रखी जाती है. बाहर निकाला गया सिल्ट बरसात में फिर से नालों के भीतर चला जाता है. होना यह चाहिए की शहरों के तमाम नालों की साल में तीन से चार बार तली झाड़ सफाई होनी चाहिए. इससे काफी हद तक जलभराव की समस्या से निजात पाया जा सकता है.

पोखर और तालाबों को फिर से जिंदा करना होगा

शहरों में पहले काफी पोखर और छोटे तालाब होते थे, लेकिन धीरे-धीरे सभी पर काफी कब्जा हो गया. इन पोखर और तालाबों की सिल्ट सफाई का काम भी यदा-कदा होता है, जिसके चलते इनकी पानी लेने की क्षमता कम हो जाती है. यदि शहर को आने वाली चुनौतियों से बचना है तो फिर से तालाब-पोखर और वाटर बाडिज को जिंदा करना होगा. इसके साथ ही हरियाली के इलाके को भी बढ़ाना होगा.

Tags:    

Similar News

-->