सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को 'बेहद अहंकारी' करार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की अपील खारिज की

Update: 2021-11-13 11:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को 'बेहद अहंकारी' करार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की अपील खारिज की 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को 'बेहद अहंकारी' करार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की अपील शनिवार को खारिज कर दी और राज्य के वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेशों के विलंबित और आंशिक अनुपालन के लिए जमानती वारंट जारी किया। मामला इलाहाबाद में एक 'संग्रह अमीन' को सेवा नियमित करने और बकाया भुगतान से संबंधित है।

इस मामले पर हाई कोर्ट ने एक नवंबर को सुनवाई के दौरान देखा कि अधिकारी अदालत को खेल का मैदान मान रहे हैं और उन्होंने उस व्यक्ति को वेतन का बकाया देने से इनकार कर दिया है जिसे पहले सेवा के नियमितीकरण के सही दावे से वंचित किया गया था।
अधिकारियों ने जानबूझकर हाई कोर्ट को गुमराह किया है और याचिकाकर्ता को बकाया वेतन नहीं देने में अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए उपक्रम का उल्लंघन किया है, यह न्यायालय अधिकारियों के निंदनीय आचरण के बारे में व्यथा और पीड़ा को दर्ज करता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नियमित हुए संग्रह अमीनों को सीजनल संग्रह अमीन पद पर नियुक्ति की तिथि से सेवा जोड़कर पेंशन व अन्य सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान तीन माह में करने का निर्देश दिया है। पिछले दिनों इलाहाबाद कोर्ट ने कहा कि पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ देने में कर्मचारी द्वारा दी गई सेवा की प्रकृति देखा जाना चाहिए। यह बात मायने नहीं रखती कि उनके द्वारा दी गई सेवा, वर्कचार्ज कर्मचारी है या सीजनल संग्रह अमीन के तौर पर है। वह चाहे दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई या किसी और नाम से नियुक्त थे। पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ देने में यह बात मायने नहीं रखती है।
वहीं, अब शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची राज्य सरकार को राहत नहीं मिल सकी। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा, 'आप इस सब इसी के लायक हैं और इससे भी ज्यादा के हैं।'
'आप इस मामले में यहां क्या बहस कर रहे हैं। हाई कोर्ट को अब तक गिरफ्तारी का आदेश देना चाहिए था। साथ ही पीठ ने कहा कि हमें लगता है कि और अधिक कड़ी सजा देने की आवश्यकता थी। हाई कोर्ट आपके साथ नरम रुख बनाए हुए था। अपने आचरण को देखें। आपने आदेशों का पालन करने के लिए कुछ नहीं किया। हाई कोर्ट आप पर बहुत दयालु रहा है। आपके पास अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है। यह अतिरिक्त मुख्य सचिव बहुत अहंकारी प्रतीत होता है।'


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