मेरठ न्यूज़: बेसिक शिक्षा विभाग एक ऐसा विभाग है, जिस पर गरीब परिवारों के बच्चों का भविष्य बनाने के लिए मुफ्त व अच्छी शिक्षा देनें की जिम्मेदारी है, लेकिन विभाग में कुछ ऐसे अधिकारी व कर्मचारी है, जो इस जिम्मेदारी का पालन नहीं करने वालों पर मेहरबान है। ऐसे में बच्चों को मिलने वाली शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा? क्या सरकार द्वारा समय-समय पर जारी शासनादेशों का पालन होगा, यह बड़ा सवाल है। शुक्रवार को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को लखनऊ सम्बद्ध कर दिया गया। सोमवार को उन्होंने बीएसए मेरठ का चार्ज भी छोड़ दिया, लेकिन जाते-जाते वह खेल कर गए। विभाग में फैले भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के आरोपों से घिरे वरिष्ठ लिपिक को वापस जिला मुख्यालय में बहाल कर दिया गया।
निलंबन बहाली के खेल में शामिल होनें के लगे हैं आरोप: जिस वरिष्ठ लिपिक को पूर्व बीएसए योगेन्द्र कुमार ने गंभीर आरोप लगने के बाद बीआरसी ग्रामीण में भेजा था अब वह वापस बीएसए कार्यालय में पहुंच गए है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वरिष्ठ लिपिक पर पूर्व बीएसए कुछ ज्यादा ही मेहरबान थे। जबकि शासन से स्थानांत्रण पर रोक लगनें के बाद इन्हीं वरिष्ठ लिपिक ने पीछे के दरवाजे से निलंबन-बहाली के जरिए शिक्षकों मनचाहे विद्यालयों में स्थानांतरित किया था। जिस शिक्षक को अपनी मनमानी जगह ट्रांसफ लेना होता था उसे पहले मामूली बात पर निलंबित किया जाता था। बाद में जांच होनें तक मनचाहे विद्यालय में सम्बद्ध कर दिया जाता था। पांच-छह माह में उसी विद्यालय में शिक्षक को स्थाई रूप से नियुक्ती दी जाती थी। इस खेल के लिए भले ही बीएसए जिम्मेदान रहें हो लेकिन इसका पूरा ताना-बाना वरिष्ठ लिपिक द्वारा ही बुना जाता था। चर्चा तो यहां तक रही कि निलंबन बहाली के इस खेल में वसूली होती थी।
स्कूलों की मान्यता में भी लिपिक की संलिप्तता:
एड. जुबैर अहमद ने सूचना अधिकार के अंतर्गत विभाग द्वारा कितने इंग्लिश मीडियम विद्यालय नर्सरी से कक्षा पांच व नर्सरी से कक्षा आठ तक। जबकि हिन्दी मीडियम में कक्षा एक से पांच, कक्षा छह से आठ व कक्षा एक से आठ तक कुल कितने विद्यालयों के पास मान्यता है की जानकारी मांगी थी। लेकिन एड. जुबैर अहमद को विभाग ने यह सूचना उपलब्ध नहीं कराई। जिसके बाद विभाग पर सूचना अधिकार कानून की अवहेलना करनें पर 25 हजार का जुर्माना भी लगा था।
बताया जा रहा है इसके लिए भी यही वरिष्ठ लिपिक जिम्मेदार रहे थे। वहीं जुलाई 2021 में चार्ज लेते समय पूर्व बीएसए ने भी जिले में गैर मान्यता वाले विद्यालयों के खिलाफ सख्ती करने की बात कही थी। जिसको लेकर उन्होंने ऐसे विद्यालय की सूची तैयार करने को कहा था।
लेकिन अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में बीएसए योगेन्द्र कुमार सूची नहीं बना सके। सूत्र बता रहें है इसमें भी यही वरिष्ठ लिपिक का हाथ रहा है। ऐसे कई मामले है जिनको लेकर वरिष्ठ लिपिक आरोपो का अंबार है, लेकिन जाते-जाते र्पूव बीएसए वरिष्ठ लिपिक को वापस मुख्यालय में तैनात कर चले गए है। अब यह क्यों और किस वजह से हुआ है यह सबसे बड़ा सवाल है।