uttar pradesh: लालटेन के सहारे पढ़ाई , बार-बार मिली असफलता लेकिन नहीं मानी हार
uttar pradeshउत्तर प्रदेश: कुछ लोग अपनी किस्मत पर घर परिवार की स्थिति, व्यवस्था की कमी और आर्थिक कमजोरी जैसी समस्याओं का रोना रोते हैं, लेकिन यह बड़ा सोचनीय और विचारणीय तथ्य है कि आखिरकार विपरीत परिस्थितियों में क्या लोग सफल नहीं होते या अधिकारी नहीं बनते? इस सवाल का बेहद शानदारFabulous जवाब दिया है बलिया कोशागार के डिप्टी कैशियर रामचंद्र जी ने। बिजली की कमी, बिजली का अभाव, लालटेन और ढिबरी के सहारे पढ़ाई और खेती का पूरा काम जैसे विभिन्न समस्याओं का सामना करते हुए ये बड़ी उपलब्धि हासिल की है, खास तौर पर आज के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है डिप्टी कैशियर रामचंद्र की सफल कहानी कोषागार बलिया के डिप्टी कैशियर रामचंद्र ने लोकल 18 को बताया कि मैं गाजीपुर जिला कहने वाला हूं। मैं बिल्कुल सामान्य परिवार का था. मेरे गांव के एक छोटे से किसान थेडिप्टी कैशियर रामचंद्र ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मैंने गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से पढ़ाई शुरू की।
उस ज़माने में कलम, किताब और कॉपी बहुत कम होते थे, तो हम लोगों की अध्ययन लकड़ी के पटरी पर होती थी। लकड़ी का कलम बनाकर दूधिया से चिपकाये गये थे। ग्रामीण परिवारों में झोला लेकर पैदल पढ़ाई जाती थी। उस समय गांव में बिजली न के बराबर रहती थी तो हम लोग लालटेन और ढिबरी जलाकर पढ़ते थे। मैं उस दौर में घर पर ही जनपद से स्नातक किया था। रामचंद्र ने बताया कि बी.ए. की पढ़ाई के बाद मैंने कई प्रतियोगी Competitorsपरीक्षाओं की तैयारी शुरू की। मने चिकित्सा विभाग और रेलवे की परीक्षा भी दी गई। मैंने तीन बार पीसीएस का परीक्षण किया। एक बार सन 1996 में टीबीसी का भी परीक्षण किया गया लेकिन लगातार जोखिम ही हाथ लग रहा है। रामचंद्र ने आगे बताया कि हम लोगों के समय में मेरिट पर सैलेक्शन करते थे। हम बात कर रहे हैं सन 1991 की जिला स्तर पर वैकेंसी निकली थी। इस दौरान मैंने पेपर में विज्ञापन पढ़ा था। जिसका एक पन्ना गाजीपुर से रूप भरा था। उस समय बलिया जिला अधिकारी के यहां हमारा साक्षात्कार हुआ। कई संघर्षों के बाद मुझे ये बड़ी कामयाबी हासिल हुई और सेलेक्शन हो गया।