गोरखपुर न्यूज़: सियासत की प्राइमरी पाठशाला कहे जाने वाले छात्र राजनीति के धुरंधरों को निकाय चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है. छात्र राजनीति से निकलकर महापौर से लेकर पार्षद का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी लंबे अंतर से पिछड़ गए हैं. लोकल सरकार की नुमाइंदगी में पिछड़े छात्र राजनीति के धुरंधर इस हालात के लिए धनबल, बाहुबल के साथ ध्रुवीकरण को जिम्मेदार बता रहे हैं.
कांग्रेस ने महापौर पद पर छात्र राजनीति से निकले नवीन सिन्हा को मैदान में उतारा था. डीएवी डिग्री कॉलेज के छात्रसंघ में 1983-84 में महामंत्री का चुनाव जीते नवीन को सिर्फ 8317 मत मिले. नवीन कहते हैं कि ‘अस्सी-नब्बे के दशक में छात्र राजनीति से निकले लोगों को मुख्य धारा की राजनीति में तरजीह मिलती थी. लेकिन नये दौर की राजनीति में संघर्षों की बुनियाद पर खड़े नेता के लिए स्थान नहीं है. धनबल, बाहुबल के साथ ध्रुवीकरण के चलते छात्र राजनीति से निकले लोग अनफिट हैं.’
वर्ष 2006 से 2012 तक छात्र राजनीति से लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जितेन्द्र वर्मा पल्लू ने भाजपा से बगावत कर महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर दो से निर्दल चुनाव लड़ा. 700 वोट हासिल कर उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा.
समाजवादी छात्रसभा के पूर्व प्रदेश सचिव और गोरखपुर यूनिवर्सिटी से छात्र राजनीति में सक्रिय शिवशंकर गौड़ ने जटेपुर वार्ड से पार्षदी का चुनाव लड़ा था. सपा की टिकट पर लड़े शिव शंकर को 630 वोट से तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. धर्मशाला बाजार और गायघाट से निर्दल चुनाव लड़ने वाले मनीष जायसवाल और कृष्ण मोहन शाही भी छात्र राजनीति से निकले हैं. निर्दल कृष्ण मोहन शाही को सिर्फ 328 वोट ही मिले. वहीं गोरखपुर यूनिवसिटी से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ चुके धर्मेन्द्र सिंह ने गोपलापुर वार्ड से पत्नी को चुनाव लड़ाया लेकिन हार मिली.