शामली: जनपद में निकाय चुनाव का रोमांच अपने चरम पर है। जहाँ एक जनसभा के दौरान शामली सीट से रालोद सदर विधायक प्रसन्न चौधरी ने शहर नगरपालिका से बीजेपी प्रत्याशी अरविंद संगल को जमकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि यह वही चेयरमैन है जिसके द्वारा एक दलित महिला अधिकारी के साथ बदसलूकी की गई थी, इसके बाद इन्हे जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। उन्होंने कहा कि दलित बेटी के साथ हुई बदसलूकी से दलित समाज में कड़ा रोष है और दलित समाज ने बीजेपी प्रत्याशी को वोट न दिए जाने की घोषणा भी कर दी है। रालोद विधायक इस बयान की उक्त वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है जिसके चलते दलित समाज भाजपा के हाथों से फिसलता दिखाई दे रहा है।
आपको बता दें कि भूत पूर्व चेयरमैन और वर्तमान बीजेपी प्रत्याशी अरविंद संगल और निवर्तमान ईओ अमिता वरुण के बीच सन 2013 में विवाद की खबर सामने आई थी। जिसके बाद ईओ के द्वारा चेयरमैन अरविंद संगल के खिलाफ एससी एसटी एक्ट में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था। जिसमें अभी कुछ माह पहले ही अरविंद संगल को एक रात जेल की हवा खानी पड़ी थी, जिसे लेकर अब निकाय चुनाव में उक्त प्रकरण को विपक्ष द्वारा फिर से धार दी जा रही है और दलित समाज को साधने की कोशिश की जा रही है।
जहां एक नगर निकाय की चुनावी जनसभा के दौरान रालोद विधायक प्रसन्न चौधरी का बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें वह कहते नजर आ रहे हैं भारतीय जनता पार्टी महिला सशक्तिकरण की बात करती है। लेकिन मैं कहता हूं बीजेपी को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और शामली सदर बीजेपी प्रत्याशी को देखना चाहिए। दलित समाज की तरफ एक ऑडियो-वीडियो और फोटो वायरल हुआ है, जिसके बाद दलित समाज ने घोषणा की है कि जो दलित समाज की बेटी जो इस नगर पालिका में ईओ के पद पर तैनात थे। जिसके साथ बीजेपी प्रत्याशी द्वारा बदतमीजी और ज्यादती की गई थी हुई थी, जिसके बाद बीजेपी प्रत्याशी को जेल भी जाना पड़ा था। इन्हीं सब बातों से आहत होकर दलित समाज ने घोषणा की है कि हम ऐसे प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे।
वही रालोद विधायक के इस बयान की वीडियो वायरल होने के बाद शामली की राजनीति में हलचल मच गई है। दलित समाज को हाथों से फिसलता देख बीजेपी प्रत्याशी की रातों की नींदें उड़ गई है। वहीं विपक्ष भी उक्त मामले को तूल देकर सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए प्रयासरत है। अब देखने वाली बात यह होगी कि रालोद विधायक के बयान का असर दलित समाज पर कहां तक पड़ता है और वह इस मामले को कहां तक वोटों में तब्दील कर पाते हैं।