नई दिल्ली: मुलायम परिवार में एक बार फिर चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच रिश्ते में बिगड़ते नजर आ रहे हैं. भतीजे ने चाचा को सपा का विधायक मानने से इनकार कर दिया है तो शिवपाल यादव ने विधानसभा सदस्यता की शपथ लेने के बाद सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर बड़ा सियासी दांव चला. भविष्य के फैसले पर उन्होंने कहा कि वक्त आने पर इसका खुलासा करेंगे. शिवपाल के इस रहस्यमयी बयान के बाद सियासी चर्चा तेज हो गई हैं. ऐसे में शिवपाल अगर बीजेपी के साथ जाने का फैसला करते हैं तो बीजेपी उन्हें क्या-क्या दे सकती है?
सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने शिवपाल यादव के रिश्ते फिर से अखिलेश यादव से बिगड़ गए हैं. शिवपाल इस कदर नाराज हैं कि अखिलेश यादव के द्वारा बुलाई गई गठबंधन के सहयोगी दल की बैठक में शामिल नहीं हुए और अब भविष्य के लिए राजनीतिक विकल्प की तलाश में जुट गए हैं. बुधवार को विधानसभा में विधायक पद की शपथ लेन के बाद शिवपाल सिंह यादव ने बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की. दोनों नेताओं के बीच करीब 20 मिनट तक बातचीत हुई है. हालांकि, शिवपाल इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया है.
शिवपाल यादव के करीबियों की माने चुनाव के समय परिवार और समाज के दबाव की वजह से शिवपाल यादव ने जहर का घूंट पीकर सब कुछ बर्दाश्त कर लिया था, पर अब वो बर्दाश्त नहीं करेंगे और अपने लिए नई सियासी राह तलाशेंगे. आजतक ने शिवपाल यादव से जब ये पूछा था कि बीजेपी के साथ नहीं जाने का उनका संकल्प अब भी बरकरार है तो उन्होंने कहा था कि इस पर कुछ नहीं बोलेंगे. इस तरह से उन्होंने भविष्य के रास्ते का संकेत दे दिया था.
वहीं, अब बुधवार को सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकत के बाद शिवपाल को लेकर सियासी चर्चा तेज हो गई है. शिवपाल के करीबी हरिओम यादव पहले ही बीजेपी में शामिल हो चुके हैं तो मुलायम सिंह यादव की बहु अपर्णा यादव ने विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी में एंट्री की थी. मुलायम कुनबे में जब वर्चस्व की जंग छिड़ी थी तो अपर्णा शिवपाल के साथ खुलकर खड़ी थी. सपा के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव के बहन और बहनोई भी पंचायत चुनाव के दौरान बीजेपी का दामन थामा था. ऐसे में अब शिवपाल को बीजेपी अपने खेमे में लाने का कदम उठाती है और वो तैयार होते हैं तो उन्हें पाला बदलने में क्या-क्या मिल सकता है.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से इस्तीफा देने के बाद अब उपचुनाव होना है. ऐसे बीजेपी शिवपाल को पार्टी में लेती है तो उन्हें आजमगढ़ सीट से अपना प्रत्याशी बना सकती है. बीजेपी आजमगढ़ सीट पर कमल खिलाने के लिए हरसंभव कोशिश करेगी. ऐसे में बीजेपी शिवपाल यादव के जरिए बड़ा सियासी दांव खेल सकती है. बसपा ने आजमगढ़ सीट पर गुड्डू जमाली प्रत्याशी बनाकर मुस्लिम कार्ड खेल चुकी. सपा से आजमगढ़ में उम्मीदवार स्थानीय होगा या सैफई परिवार का, यह बात साफ नहीं है.
आजमगढ़ सीट पर 2009 में कमल खिलाने वाले रमाकांत यादव अब सपा में हैं और फूलपुर पवई से विधायक हैं. राजनीति की सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का मानना है कि बदली परिस्थितियों में आजमगढ़ उपचुनाव काफी रोचक हो गया है. ऐसे में बीजेपी से यादव बिरादरी का उम्मीदवार उतरा तो सपा के लिए यह सीट चुनौतीपूर्ण हो जाएगी. 2019 में बीजेपी ने भोजपुरी एक्टर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को उतारा था, लेकिन वो अखिलेश यादव को मात नहीं दे सके. ऐसे में बीजेपी के लिए शिवपाल यादव एक ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं.
बीजेपी ऐसा करती है तो एक तीर से दो शिकार करेगी. पहल आजमगढ़ में शिवपाल यादव के रूप में मजबूत प्रत्याशी मिल जाएगा और अगर वो जीतते हैं तो दूसरा जसवंतनगर सीट पर भी कमल खिलाने का मौका मिल जाएगा. शिवपाल अपने बेट के सियासी भविष्य के लिए राह तलाश रहे हैं. सपा ने उनके बेटे को टिकट नहीं दिया था. ऐसे में जसवंतनगर सीट खाली होने पर बीजेपी उनके बेटे के जरिए बड़ा सियासी दांव चल सकती है.
शिवपाल यादव को बीजेपी अपने साथ मिलाने के लिए राज्यसभा भेजने का दांव भी चल सकती है. यूपी में अगले कुछ महीने में राज्यसभा की सीटें रिक्त हो सकती है. ऐसे में सपा ने जिस तरह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांटे की टक्कर दिया है, उसके चलते बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सारे सियासी तानबाने बुन रही है. मंत्रिमंडल के गठन से लेकर विभागों के बंटवारे तक में सियासी समीकरण साधे गए हैं. ऐसे में सपा के कोर वोटबैंक यादव समुदाय में सेंधमारी के लिए बीजेपी शिवपाल यादव को उच्चसदन भेजकर केंद्रीय मंत्री बनाने का दांव चल सकती है. मोदी सरकार में यूपी से कोई भी यादव केंद्रीय मंत्री फिलहाल नहीं है. ऐसे में राज्यसभा का एक विकल्प शिवपाल के लिए बन सकता है.
शिवपाल यादव सपा के टिकट पर जीतकर भले ही विधायक बने हो, लेकिन अखिलेश यादव उन्हें सहयोगी दल के नेताओं को तौर पर ही ट्रीट कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी उन्हें अपने साथ लेकर सूबे की योगी सरकार की कैबिनेट में मंत्री बनाने का दांव चल सकती है. योगी सरकार 2.0 मंत्रिमंडल में यादव समुदाय से कोई भी कैबिनेट मंत्री नहीं है. गिरीश यादव एकलौते हैं, जिन्हें स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनाया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथछ शिवपाल यादव की केमिस्ट्री पहले से अच्छी रही है और आने वाले दिनों में इस केमिस्ट्री का असर भी दिखाई दे सकता है.
शिवपाल यादव का अपना सियासी कद है और यादव समुदाय के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है, क्योंकि सपा में रहते हुए उन्होंने यादव समुदाय के लोगों का काम करते रहे हैं. यूपी में 9 फीसदी यादव वोटर हैं और ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी है, जो सपा के मूल वोटर माना जाता है. ऐसे में बीजेपी 2024 में सपा को मात देने के लिए शिवपाल यादव को लेकर यादव समुदाय के रूप में बड़ा चेहरा बना सकती है.
वहीं, अब समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव के लिए फिलहाल कुछ नहीं बचा है. अखिलेश यादव खुद नेता विपक्ष बन चुके हैं और पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को तो बनाएंगे नहीं. ऐसे में सिर्फ विधायक बने रहना शिवपाल यादव को मंजूर नहीं. ऐसे भी चर्चा है कि शिवपाल यादव न सिर्फ अलग सियासी रास्ता ढूंढ रहे हैं बल्कि उस दिशा में अपने सियासी कदम भी बढ़ा चुके हैं. शिवपाल यादव ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा था कि अब वह फिर से अपने लोगों के बीच जाएंगे और सभी के साथ बातचीत कर आगे की अपनी रणनीति तय करेंगे
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के कहने पर शिवपाल यादव ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया था. उन्होंने अपना नेता अखिलेश को मानते हुए अपनी पार्टी तक कुर्बान कर दी थी. इसके बावजूद अखिलेश ने चाचा शिवपाल को न सिर्फ एक सीट दी बल्कि पार्टी में वह सम्मान भी नहीं दिया जिसकी उन्हें घर वापसी पर उम्मीद थी.
शिवपाल ने अपनी पार्टी के 25 नेताओं के नामों की सूची अखिलेश को टिकट देने के लिए सौंपी थी. यह कहा था कि जो भी जिताऊ हों, उन्हें टिकट दे दें. लेकिन, सपा ने इनमें से एक भी नेता को नहीं दिया गया. शिवपाल यादव भी जसवंतनगर सीट पर सपा के सिंबल साइकिल पर चुनाव लड़े. परिवार में एकता के नाम पर शिवपाल सब कुछ सहते रहे, लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब सपा ने उन्हें अपना विधायक मानने से इनकार करते हुए विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया.
सपा के विधायक दल की बैठक में न बुलाए जाने पर नाराजगी जताते हुए शिवपाल कहा था कि वह सपा के सक्रिय सदस्य व विधायक हैं. उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया इसका उत्तर सपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ही दे सकता है. इसके बाद शिवपाल यादव नाराज होकर इटावा चले गए थे, जहां उन्होंने सपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले सिरसागंज के पूर्व विधायक हरिओम यादव से भी मुलाकात की थी. हरिओम रिश्ते में उनके समधी हैं और बीजेपी में शामिल होने से पहले शिवपाल के साथ थे.
इटावा से ही शिवपाल दिल्ली चले गए थे. दिल्ली में शिवपाल ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात किया. सूत्रों की माने तो शिवपाल ने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान बीजेपी के शीर्ष नेताओं से भी मुलाकात की है. इसी वजह से मंगलवार को अखिलेश द्वारा बुलाई गई सहयोगी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं हुए. वहीं, बुधवार को शिवपाल ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से मिलकर विधायक पद की शपथ ली.
शपथ लेने बाद शिवपाल यादव पांच कालीदास मार्ग पर जाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकत की. दोनों नेताओं के बीच 20 मिनट की मुलाकत हुई. शिवपाल यादव के जाने के बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचे. माना जा रहा है कि शिवपाल को लेकर बीजेपी में सियासी खिचड़ी पकनी शुरू हो गई है. ऐसे में उन्हें लेने और उनकी भूमिका पर भी मंथन चल रहा है. ऐसे में देखना है कि शिवपाल यादव कितने दिनों तक सपा में रहते हैं और बीजेपी में आते हैं तो किस रोल में होंगे?