धोखाधड़ी के आरोपित को सात वर्ष की कठोर कैद

Update: 2023-05-28 06:18 GMT

बस्ती न्यूज़: अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम उमेश यादव की अदालत ने धोखाधड़ी व कूट रचना के मामले में आरोपित को सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है. न्यायालय ने 5500 रुपए अर्थदंड से भी दंडित किया है. अर्थदंड न देने पर दो माह 15 दिन की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी. आरोपित ने कूटरचना करके तैयार किए गए अभिलेख की मदद से अदालत में मुकदमा दायर किया था.

रुधौली क्षेत्र के ग्राम डड़वा तौ़फीर निवासी श्रीराम ने अपने चचेरे भाई परशुराम के विरुद्ध धोखाधड़ी, कूट रचना का आरोप लगाते हुए न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया है. उनका कहना है कि वह दो भाई हैं. उनके छोटे भाई का नाम कंचन प्रसाद है. उनका चचेरा भाई परशुराम लालची प्रवृत्ति का व्यक्ति है, मुंबई में कमाई करता है और अपने रुपए की बदौलत दूसरों की जमीन जालसाजी कर हड़पने का काम करता है. श्रीराम के पिता रामेश्वर को यह डर था कि कहीं जालसाजी करके उसके हिस्से की जमीन को भी परशुराम न हथिया ले. यही सोच कर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों श्रीराम और कंचन प्रसाद के हक में 18 दिसंबर 1996 को अपनी संपत्ति का पंजीकृत बैनामा कर दिया. जब इसकी भनक परशुराम को लगी तो उसने बैनामा की नकल लिया और बैनामा की नकल में कूट रचना करते हुए श्रीराम व कंचन प्रसाद के नाम के बीच अपना नाम परशुराम लिखवा लिया. खारिज दाखिल का प्रार्थना पत्र देकर 15 अप्रैल 1997 को अपना नाम भी राजकीय अभिलेखों में दर्ज करा लिया. जब श्रीराम को इसकी जानकारी हुई तब उन्होंने तहसील में शिकायती प्रार्थना पत्र दिया और 15 जुलाई 2000 को परशुराम का नाम निरस्त करा दिया. दूसरी तरफ परशुराम ने बैनामा को निरस्त करने हेतु दीवानी न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया जो 14 अगस्त 2007 को खारिज हो गया. अदालत में इस मुकदमे की नकल भी श्रीराम ने दाखिल किया था. पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने माना कि परशुराम अपने बनाए हुए जाल में स्वयं फंसा हुआ है. एक तरफ उसने 18 दिसंबर 1996 के बैनामे की नकल में अपना नाम बढ़ा लिया दूसरी तरफ उसी बैनामा को निरस्त करने के लिए श्रीराम और कंचन प्रसाद के विरुद्ध मुकदमा भी दाखिल किया. उसके विरुद्ध आरोप बखूबी साबित पाया जाता है.

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