गीताप्रेस, सामान्य लोगों के साथ ही राजनीतिक व धार्मिक लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहा है। सस्ते मूल्य पर शुचिता व शुद्धता के साथ अच्छी व आकर्षक पुस्तकें पाठकों को उपलब्ध कराना हमेशा पाठकों के बीच कौतूहल का विषय रहा है। यह कौतूहल लोगों को प्रेस तक खींच लाता है।
अनेक राजनेताओं, अधिकारियों समेत बड़ी संख्या में लोग गीताप्रेस आकर भ्रमण व दर्शन कर चुके हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद, 14वें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द व संत मोरारी बापू के हैं। राष्ट्रपतियों ने यहां आकर गीताप्रेस की गरिमा बढ़ाई तो संत मोरारी बापू ने अपना आशीर्वाद दिया और गीताप्रेस के निरंतर पल्लवित होने की शुभकामना की। भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद 29 अप्रैल, 1955 को यहां आए थे। उन्होंने गीताप्रेस मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्धाटन किया था।
गीताप्रेस शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह में चार जून, 2022 को 14वें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द आए थे। इन दोनों राष्ट्रपतियों ने गीताप्रेस की आगंतुक पुस्तिका में कुछ लिखा नहीं है, लेकिन यहां की व्यवस्था से अभिभूत हुए और हर संभव मदद का आश्वासन दिया था। अक्टूबर, 2019 में गीताप्रेस पहुंचे संत मोरारी बापू ने अपने आशीर्वाद से गीताप्रेस की धरती को सींचा। उन्होंने गीताप्रेस को राष्ट्र सम्मान का असली हकदार बताया था। दिसंबर, 2018 में यहां आए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने गीताप्रेस का भ्रमण और लीला चित्र मंदिर का दर्शन किया था।
उन्होंने आगंतुक पुस्तिका में लिखा है कि वर्षों से कामना थी कि जिस गीताप्रेस की पुस्तकें घर-घर में पहुंची हैं, उसका दर्शन किया जाए। गोरखपुर का गीताप्रेस कैसा होगा। वहां काम करने वाले लोग कैसे होंगे। गीताप्रेस की किताबों को मैं पढ़ता रहा हूं, बचपन से यह इच्छा थी कि गीताप्रेस को देखूं, उसके ट्रस्टी व वहां काम करने वाले लोगों से मिलूं, आज यह इच्छा पूरी हुई। गीताप्रेस ने धर्म व संस्कृति की रक्षा में बड़ा योगदान दिया है, वह भी खामोशी के साथ। बिना लाभ के व नि:स्वार्थ भाव से किया जाने वाला गीताप्रेस का यह कार्य पीढ़ियों तक लोग याद रखेंगे। इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे जेपी नड्डा व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. दुराईस्वामी समेत कई राज्यपाल व न्यायमूर्ति भी गीताप्रेस आ चुके हैं।
आनुषांगिक प्रतिष्ठानों के माध्यम से पूरा करते हैं घाटा
आखिर गीताप्रेस इतनी सस्ती पुस्तकें कैसे उपलब्ध कराता है, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने पाठक गण यहां आते रहते हैं। गीताप्रेस लागत मूल्य से कम में पुस्तकें उपलब्ध कराता है, ताकि हर व्यक्ति तक धर्म व संस्कारों की आभा पहुंच सके। इसके लिए गीताप्रेस ने कुछ आनुषांगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना की है, जिनकी आय से गीताप्रेस का घाटा पूरा किया जाता है। इनमें हरिद्वार में आयुर्वेदिक दवाओं की फैक्ट्री व गीताप्रेस भवन में बनी दुकानें प्रमुख हैं।