मेरठ: वास्तविक सड़क की दूरी 340 मीटर है, जबकि 600 मीटर का प्राक्कलन नगर निगम के इंजीनियरों ने कैसे तैयार कर दिया? संशोधित प्राक्कलन की ड्राइंग क्यों तैयार की गई? इसमें बड़ा घोटाला किया जा रहा था, जिसके चलते ड्राइंग में संशोधन किया। प्राक्कलन में संशोधन करने से स्पष्ट हो गया है, इसमें नगर निगम के खजाने को भारी चोट पहुंचाने का षड्यंत्र चल रहा था। फिर इसकी निविदा करना और अनुमानित लागत का निर्धारण किया जाना बेहद आश्चर्यजनक और घोटाले को जन्म दे रहा हैं?
जांच समिति की जांच में भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि 250 मीटर की दूरी पर आकलन में अधिक दर्शाई गई। जांच अधिकारी भी मानते हैं कि यह गड़बड़झाला जानबूझकर किया गया है। समिति ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में यह माना है महत्वपूर्ण बात यह है कि पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों ने इसे कैसे क्लीन चिट दे दी? यह भी जांच का विषय है। सड़क निर्माण के नाम पर यह घोटाला नगर के वार्ड-35 का है। जांच में यह तथ्य भी सामने आ चुका है कि संबंधित इंजीनियरों ने मौका मुआयना ही नहीं किया और प्राक्कलन तैयार कर दिया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि फर्जी प्राक्कलन कैसे बन गया। यह भी जांच का विषय है 600 मीटर निरंतर अभिलेखों में स्वीकृत किया जाना दर्शाया गया है, जिसके चलते भ्रष्टाचार और सरकारी धन की बंदरबांट करना ही उद्देश्य इंजीनियरों का रहा है। इस घोटाले की जांच करने के लिए एक समिति गठित की गई थी, जिसमें अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार, मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह यादव, मुख्य कर निर्धारण अधिकारी अवधेश कुमार शामिल थे।
इस जांच समिति ने भी माना है कि सड़क निर्माण के नाम पर व्यापक अनियमितता इंजीनियरों के स्तर पर की गई है, जिसके लिए इंजीनियरों की टीम पूर्ण रूप से दोषी है तथा जांच समिति ने इन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी लिख दिया है। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि राजेंद्र सिंह तत्कालीन क्षेत्रीय अवर अभियंता, पदम सिंह अवर अभियंता तकनीकी, नानक चंद तत्कालीन क्षेत्रीय सहायक अभियंता, विकासपुरी अधिशासी अभियंता इस फर्जीवाड़े के लिए पूरी तरह से दोषी हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य यह की पूरी जांच रिपोर्ट शासन स्तर पर गई हुई है। इसके बावजूद जिन अभियंताओं ने फर्जीवाड़ा किया है। उनको अभी भी महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती देकर सम्मान बढ़ाया जा रहा है। विकास कुरील अधिशासी अभियंता है और वर्तमान में नगर निगम के तमाम महत्व सड़कों के निर्माण आदि का कार्य देख रहे हैं। जब जांच समिति इनके खिलाफ रिपोर्ट तैयार करके दे चुकी है तो फिर विकास कुरील को मत्वपूर्ण जिम्मेदारी से क्यों नहीं हटाया जा रहा है? इसमें कहा जा रहा है कि विकास कुरील नगर आयुक्त डा. अमित पाल शर्मा के बेहद करीबी है, जिसके चलते उन्हें नहीं। उनको महत्वपूर्ण पद पर बनाए रखा जा रहा है। इसी तरह से भ्रष्टाचारियों को अधिकारियों के आला अफसरों की तरफ से संरक्षण मिल।