मेरठ न्यूज़: निकाय चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारी में जुटे हैं, लेकिन रालोद की तैयारी ने सपा की टेंशन बढ़ा दी है। दरअसल, रालोद मेरठ की मेयर सीट पर अपना दावा ठोक रही है। रालोद की यही दावेदारी सपा को मुश्किल में डाल रही हैं। क्योंकि सपा-रालोद को गठबंधन धर्म भी निभाना हैं, जिसको लेकर आपस में कड़वाहट पैदा हो सकती हैं। क्योंकि सपा भी मेयर सीट पर दावे कर रही हैं। खतौली उप चुनाव में मिली जीत के बाद रालोद नेताओं में उत्साह का संचार हो गया हैं, जिसके चलते मेयर के दावेदार भी बढ़ गए हैं।
पिछले दिनों रालोद की मीटिंग में जिस तरह से मेयर व पार्षदों ने दावेदारी की, उससे एकाएक रालोद का जनता में क्रेज बढ़ गया। ऐसे में सवाल इस बात का है कि कहीं सपा-रालोद के बीच कोई पेंच तो नहीं फंस ना जाएगा। रालोद से डा. राजकुमार सांगवान, मनीषा अहलावत समेत दर्जन भर लेता चुनावी दौड़ में शामिल हो गए हैं। उधर, सपा विधायक अतुल प्रधान अपनी पत्नी सीमा प्रधान को मेयर का सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाना चाहते हैं। उन्होंने इसकी दावेदारी पार्टी हाईकमान के सामने दावेदारी ठोंक दी हैं।
यही नहीं, सपा से ही शहर विधायक रफीक अंसारी भी अपनी पत्नी को मेयर सीट पर चुनाव लड़ाना चाहते हैं। इसी वजह से सपा-रालोद के बीच मेयर की सीट को लेकर अवश्य ही कुछ खटपट हो सकती हैं। इसकी संभावनाएं प्रबल बनी हुई हैं। हालांकि रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी का फार्मूला है कि मेयर सीट पर भी गैर मुस्लिम मजबूत प्रत्याशी को चुनाव लड़ाया गया तो भाजपा को हराया जा सकता हैं। क्योंकि इसी तरह का फार्मूला खतौली उप चुनाव में भी अपनाया गया हैं। फिर बसपा पर भी यह निर्भर करेगा कि कोई मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी नहीं होना चाहिए।
यदि बसपा से मजबूत मुस्लिम आता है तो रालोद और सपा का गणित अवश्य ही बिगड़ जाएगा। फिलहाल सपा-रालोद के बीच मेयर की सीट को लेकर टेंशन बढ़ गई हैं। अब 17 दिसंबर को लखनऊ या फिर दिल्ली में समन्वय समिति की बैठक होने जा रही हैं, जिसमें पश्चिमी यूपी के दोनों दलों के नेताओं को भी बुलाया गया हैं। इस मीटिंग में फाइनल होगा कि किस सीट पर कौन सी पार्टी चुनाव लड़ेगी?
इससे पहले तो सिर्फ दावे चल रहे हैं, लेकिन रालोद के दावे भी सपा की टेंशन बढ़ा रहे हैं। उधर, भाजपा भी मेयर की सीट को कब्जाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दिनों मेरठ दौरे पर आये तो वह स्पष्ट कह चुके हैं कि विकास के लिए लोकल सरकार भी चाहिए। भाजपा भी जाट-गुर्जर को छोड़कर किसी अन्य जाति से उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहती हैं।
मेयर निर्वाचन क्षेत्र में करीब 65 हजार जाट मतदाता हैं, जो अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि गुर्जर मतदाताओं की तादाद कम हैं, लेकिन फिर भी भाजपा में गुर्जर नेताओं की भी दावेदारी बढ़ गयी हैं। कई जाट नेता भी भाजपा में टिकट मांग रहे हैं। ग्राउंड स्तर से भाजपा रिपोर्ट मंगवा रही हैं, ताकी मजबूत उम्मीदवार का चयन हो सके।